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________________ अरिज न. ( आश्चर्यम् ) विस्मय, चमत्कार; १५८ अणिटै थि, (अनिष्टम्) अप्रीतिकर; नेष्य; २-३४ । २-६७। अणुकूलं वि (अनुकूलम्) अप्रतिकूल; अनुकूल, २-२१७ अच्छरोध न. ( आश्चर्यम् ) विस्मय, चमत्कार १-५८ | अणुसारिणी श्री. वि. (अनुसारिणी) अनुसरण करने २०६७। वाली; पीछे पीछे चलने वाली; १.६।। श्रच्छिन्न वि. ( अच्छिन्न ) नहीं सोड़ा हुआ; अन्तर- | अणुसारेण पु' (अनुसारेण) अनुसरण द्वारा अनुवर्तन से; रहित; २.१९८॥ २-१७४। अच्छी पु. स्त्री (अक्षि.) आंख; १.३३, ३५। अचमाणो बकृ. (आवर्तमान:) चक्राकार घूमता हुआ; अण्डी (अक्षिणो) आंखों को १.३३, २०१७ परिभ्रमण करता हआ; १.२७१। अच्छेरं न. (आश्चर्यम्) विस्मय, चमत्कार; १-५८ । अत्ता पु. (आत्मा) आत्मा, जीव, चेतन, निन, स्व; २-१.६६,६७। अजि पु. (अजितम्) द्वितीय तीर्थकर अजितनाथजी अत्थ न. पु. (अर्थ) पदाचं; तात्पर्य; धम; 1-७; १-३३ को; १-२४ । अस्थक न. (देशाज) (अकाण्डम्) अकाण्ड, अकस्मात् अज्ज अ. (अध) आज; १-३३, २-२०४, ___असमय; २-२७४। अजज पु. (आर्य) श्रेष्ठ पुरुष मुनि १-६ । अस्थिनो वि. अर्षिक:) धनी, धनवान् २-१५९ । अब्जा स्त्री. आशा आदेश, हम ; २-८३ श्रथिरी वि. (अस्थिरः) चंचल, चपल, अनित्य, विनश्वर; अज्जा स्त्री. (आर्या) सावा; आर्म नामक छन्द | पूज्या; १-७७॥ अदसणं न. (अदर्शनम्) नहीं देखना; परोक्ष; २-१७ । अज्जू स्त्री, (श्वश्रूः) सासू -७७ । अहं वि. (माईम्) गीला; भीजा हुआ; १-८२ । अञ्जली पु स्त्री. (अजलि:) कर-संपुट; नमस्कार रूप | अहसणं न, (अदर्शनम्) नहीं देखना; परोक्ष; २-९७ ॥ विनय१-३५. अहो पु. (अन्दः) मेष, वर्षा; वर्ष, संवत्सर, २.७९ । अलिअं अंजिअं वि. (अजितम्) आजा हुआ;१-३० । श्रद्धं वि, (अधम्) आषा; २-४१ । अदइ सक, (अटतिः) बहमण करता है। १-१९५ | अनलो पु. (अनल:) अग्नि आग; १-२२८ । अट्टमट्टपू. (देशज) क्यारी; २-१७४। अनिलो पु. (अनिलः) वाय, पवन, १-२२८ । अट्ठी स्त्रो. (अस्पिः ) हड्डी; २-३२ अन्तमायं वि. (अन्तर्गतम) अदर रहा था; १-६०॥ अट्ठो पु. ( अधः ) वस्तु, पदार्थ, विषय, वाच्यार्य, अन्तप्पामओ पु. (अन्तः पातः) अन्तर्भाव. समावेश; २-७७ ।' ___ मतलब, प्रयोजन; ३.३३ । अन्तरप्पा पु. (अन्तरात्मा) अन्तरात्मा; १-१४ ।। अली पु. (अवटः कप के पास में पशुओं के पानी अन्तरं, अंतरं न, अन्तरम्) मध्य, भीतर, भेद, विशेष कर्क पीने के लिये जो गड्ढा आदि किया जाता है वह, १-२७१ अन्तरेसु (अन्तरेषु) भेदों में;२-१७१ अड़त वि. (अर्थम्) आधा; २-४१ । | अन्तावेई स्त्री. (अन्तर्वेदिः) मध्य की वेविका; अथवा अण म. (ऋणम्) ऋण, कर्ज, १-१४ । पु. में गंगा और यमुना के बीच का देश:) श्रण अ. (नअर्थ) 'नहीं' अर्थ में प्रयुक्त होता है। (कुमारपाल काव्य); १.४। अन्तेयारी पु. बि. (अन्तमचारी बीच में जाने वाला; १-६. अणन पु( अनंग:) काम; विषयाभिलाषा; कामदेवः | अन्तेउरं न. (अन्त: पुरम्) राज-स्त्रियों का निवास गृह २-१७४। अणरणय वि. (अनन्यक) अभिन्न, अपयम्भूत; २-१५। । अन्तो अ.(अन्तर मध्य में;1-10| अणिवेतयं पु. (अति मुक्तकम्) अयबस्ता कुमार को; १-२६, अन्तोरि . (अन्तोपरि) आन्तरिक माग के ऊपर, १-१४ १७८,२०८। | अन्तो वीसंभ निवेसिवाणं वि. ( अन्तविधम्भ-निवेसि
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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