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________________ ५२६ ] 'अ' के आगे 'अत्थि' का 'अ' होने से लोप और १.५ से हलन्त 'न' में 'अति' के 'अ' की संधि होकर 'नरिथ' रूप सिद्ध हो जाता है। * प्राकृत व्याकरण कूत होता है!सूत्र 'जं' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-१४ में की गई है। 'न' अव्यय की सिद्धि सूत्र - संख्या १-६ में की गई है। दात संस्कृत सकर्मक क्रिया पत्र का है। इस संख्या १०१०७ से द्वितीय 'दू' का लोपः ३-१५८ से लोप हुए 'दू' पश्चात् शेष रहे हुए 'आ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति १-१० से प्रथम 'द' में रहे हुए 'अ' के आगे 'ए' प्राप्त होने से लोपः १-५ से प्राप्त हलन्त 'दू' में आगे रहे हुए स्वर 'ए' को संधि और ३-१३६ से वर्तमान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर के रूप सिध्द हो जाता है । के विधि-परिणामः संस्कृत रुप है । इसका प्राकृत रूप विहि-परिणामो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से ‘घ्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थानीय रूप विसर्ग के स्थान पर प्राकृत में 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर fare परिणामी रूप सिद्ध हो जाता है ।। २-२०६ ।। मणे विमर्श ॥२- २०७॥ भणे इति विमर्शे प्रयोक्तव्यम् || मणे सूरी । किं स्वित्सूर्यः || अन्ये मन्ये इत्यर्थमपीच्छन्ति ॥ अर्थ:-'मरणे' प्राकृत साहित्य का अव्यय हैं जो कि 'तर्क युक्त प्रश्न पूछने' के अर्थ में अथवा 'तर्क- युक्त विचार करने' के अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है । 'विमर्श' शब्द का अर्थ 'तर्क- पूर्ण विचार' होता है । जैसे:- किंचित् सूर्यः =मणे सूरो, अर्थात् क्या यह सूर्य है। तात्पर्य यह है कि- 'क्या तुम सूर्य के गुण-दोषों का विचार कर रहे हो। 'सूर्य के संबंध में अनुसन्धान कर रहे हो ।' कोई कोई विद्वान 'मन्ये' र्थात् 'मैं मानता हूं'; 'मेरी धारणा है कि इस अर्थ में भी 'म' श्रव्यय का प्रयोग करते हैं । 'किं स्पिन संस्कृत अध्यय रूप है । इसका आदेश प्राप्त प्राकृत रूप मणे होता है। इसमें सूत्रसंख्या २०२०' से 'किंचित्' के स्थान पर 'मणे' आदेश की प्राप्ति होकर मये रूप सिद्ध हो जाता है । भूरो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-६४ में की गई है। मन्ये संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मणे होता है। इसमें सूत्र संख्या २७८ से 'य' का लोप और १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण्' की प्राप्ति होकर 'भणे' रूप सिद्ध हो जाता है ।। २- २०७३। अम्मो आश्चर्ये ॥२-२०८ ।। अम्मी इत्याशर्ये प्रयोक्तव्यम् | अम्भो कह पारिज्जइ ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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