SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ ] -लेविन संस्कृत स्थान पर 'ह' की प्राप्ति सीयाल रूप है। इसका प्राकृत रूप लेहेण होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'ल' के ३०६ से सुखीया विमfer के एक वचन में अकारान्त में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की शक्ति और १-१४ से प्राप्त प्रत्यय 'था' के पूर्व में स्थित 'ह' में रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'ए' को प्राप्ति होकर ले रूप विस हो जाता है ।। १- १८९ ।। * प्राकृत व्याकरण * अप पाई नञर्थे ॥ २-१६० ॥ धलाई इस्मेती नजीर्थे प्रयोक्तव्यौ ॥ श्रथ चिन्तिश्रममुखन्ती । गाई करेमि रो || अर्थ - 'महीं' अर्थ में प्राकृत-साहित्य में 'अन' और 'जाई' अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार 'अ' और 'ई' अव्यय निषेधार्थक है अथवा नास्तिक अर्थ है :- अविन्तितम् अजानन्तो अणचित अणुमती अर्थात् नहीं सोची बिचारी हुई (बाल) को नहीं जानती हुई। दूसरा उदाहरण इस प्रकार है-न करोनि रोमम्णाई करेमि शे । इत्यादि । अचिन्तितम् संस्कृत द्वितीयान्त विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप अणचिन्ति होता है। सूत्र संख्या २-१९० से भयंकर' के स्थान पर प्राकृत में 'मन' अध्यय की प्राप्तिः १-१७७ से 'तू' का लीप; ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में अथवा पुल्लिंग में 'म्' प्रत्यम की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त '' का अनुस्वार होकर अग चिन्ति रूप सिद्ध हो जाता है । अजामन्ती संत विशेषण रूप है इसका प्राकृत रूप अनुजसो होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-७ से 'जान' के स्थान पर 'मुन' आदेश; ४-२३९ से हलन्त ' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति ३-१८१ से संस्कृत प्रस्पय 'शत्रू' के स्थानीय रूप 'न्त' के स्थान पर प्राकृत में मो 'त' प्रश्य को प्राप्ति ३-३२ से प्राप्त पुलिस रूप 'अमुमन्त' को स्त्रीलिंग रूप में परितार्थ 'को' प्रत्यय की प्राप्ति प्राप्त प्रत्यय 'की' में 'ह' इत्संजक होने से 'त' में स्थित अन्त्य 'भ' की इश्ता होकर इस 'अ' का लोप और १-५ से प्राप्त हलन्त 'लू' में उक्त 'ई' प्रत्यय की संधि होकर अमुणन्ती रूप सिद्ध हो जाता है । 'न' संस्कृत अव्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप 'गाई' होता है। इसमें पत्र संख्या २-१९० से 'न' के स्थान पर 'बाई' धावेश की प्राप्ति होकर णाई रूप सिद्ध हो जाता है। sita संस्कृत air क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप करेमि होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-२३१ से मूल संस्कृत रूप 'क' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्तिः ३-१४२ सेवाकाल के एक वचन में तृतीय पुरुष मे संस्कृत प्रत्यय 'मि' के स्थान पर प्राकृत में भी मि' प्रत्यय को प्राप्ति और ३-१५८ से प्राप्त विकरण प्ररपण 'अ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होकर करो रूप सिद्ध हो जाता है । रोषम् संस्कृत द्वितीयान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप स्थान पर 'स' की प्राप्ति ३-५ द्वितीयाक्ति के एक से होता है। इसमें सूत्र संख्या १०९६० से 'व' के में प्रकारात में 'न' प्रत्यय की प्राप्ति र १-२३ د. ...
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy