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________________ ४६० * प्राकृत व्याकरण कमलम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कमलं होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यप को प्राप्ति और १२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कमलं रूप सिद्ध हो जाता है। इष संस्कृत अव्यय रूप है | इसका प्राकृत रूप 'विम' भी होता है । इसमें सूब-संख्या २-१८२ हे 'इव' के स्थान पर विअ आदेश होकर विअ रूप सिद्ध हो जाता है । नलोत्पल माला संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप नीलप्पल-माला होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से चौर्घ स्वर रूप 'ओ' के स्थान पर हस्व स्वर रूप 'ट' को प्राप्ति; २-७७ से 'त्' का लोप और २-८९ से लोप हुए न के पश्चात् शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'एप' की प्राप्ति होकर नीलुप्पल-माला रूप सिद्ध हो आता है। इव संस्कृत अव्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप 'इव' होता है। इसमें सत्र-संख्या ५-१८२ से वैकल्पिक पक्ष होने से 'ब' का 'इव' ही यथा रूप रहकर इस रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-१८२ जेण तेण लक्षणे ॥२-१८३॥ जेण तेण हत्येतो लक्षणे प्रयोकव्यौ । भमर- लेग कमल-वणं । भमर रुग्रं तेण कमल-वर्ण । अर्थ:-किसी एक वस्तु को देखकर अयया जानकर उससे संबंधित अन्य वस्तु को कल्पना करना अर्थात् 'जात' द्वारा 'ज्ञेय' को कल्पना करने के अर्थ में प्राकृत साहित्य में 'जेण' और 'ग' अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। असे:-भ्रमर-रुतं येन ( लक्ष्यीकृत्य ) कमल वन और भ्रमर-रुतं तेन ( लक्ष्य कृत्य ) कमल-बनम्, अर्थात् अमरों का गुजारव (है) तो (निश्चय ही यहां पर) कमल-वन (है)। भ्रमर-रुतं संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप भमर-रूम होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७९ से प्रथम 'र' का लोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर भमर-अं रूप सिद्ध हो जाता है । येन (लक्ष्यीकृष्य इति अर्थे) संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जेण होता है। इसमें मूत्र-संख्या १-२४५ से '' के स्थान पर 'ज' को प्राप्ति और १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' को प्राप्ति होकर जेण रूप सिद्ध हो कमल वनम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप कमस-वणं होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२२८ से न' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में "fe' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और 4-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कमलषणं रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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