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________________ ४८८ ] लोप और १-५ से प्राप्त हुलम्त 'ज्ज्' में नाग स्थित प्रत्यय 'ए' की संधि होकर कज्जे रूप सिद्ध हो जाता है । ।। २-१८० ।। * प्राकृत व्याकरण * हन्द च गृहाणार्थे ।।२-१८१ ॥ हन्द हन्दि च गृहणार्थे प्रयोक्तव्यम् || हन्द पलोएस इमं । हन्दि । गृहाणेत्यर्थः ॥ अर्थ:- 'जो' इस अर्थ को व्यक्त करने के लिये प्राकृत-साहित्य में 'हत्व' और 'हरिव' का प्रयोग किया जाता है । जैसे:-हन्द (= गृहाण) प्रलोकय इवम् त्व! लो इमं अर्थात् लैनो इमको देखो। हच्चि गृहाण अर्थात् भो । 'हन्द' प्राकृत रूख अर्धक अव्यय है अतः साधनिका की आवश्यकता नहीं है । = प्रलोकय संस्कृत आशार्थक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप पोएस होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'इ' का लोपः १- १७७ से '' का लोप: २ १५८ से लोप हुए 'कू' के पश्चात् शेष रहे हुए 'क' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और ३-१७३ से द्वितीय पुरुष के एक वचन में आज्ञार्थ में अथवा विध्यर्थ में 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पलीएस रूप सिद्ध हो आता है । इदम् संस्कृत द्वितीया सर्वनाम हूँ । इसका प्राकृत रूप इमं होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-७२ से इम् के स्थान पर 'इस' आवेश; ३५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्स 'म्' का अनुस्वार होकर हमें रूप सिद्ध हो जाता है । 'हन्दि ' प्राकृत में रूद्र-अयंक अव्यय होने से साधनिका को आवश्यकता नहीं है ।।२-१८१।। na fra fas or a वि इवार्थे वा ॥२- १८२ ॥ एते इवार्थे अव्यय संज्ञकाः प्राकृते वा प्रयुज्यन्ते ॥ कुमु मित्र | चन्दणं पिव | हंसो विव । सायरो व्व । खीरो सेसम्म च निम्मोओ | कमलं बिका | पक्षे । नीलुप्पल-माला इव ॥ I 1 अर्थः- 'के समान' अथवा 'की तरह' अर्थ में संस्कृत भाषा में 'इव' अव्यय प्रयुक्त किया जाता है । प्राकृत भाप में भी 'इस' अभ्यय इसी अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। किन्तु istore रूप से 'हव' अव्यय के स्थान पर प्राकृत में छह अध्यय और प्रयुक्त किये जाते हैं; जो कि इस प्रकार है:- १ व २ व ३ विव, ४५ व और ६ वि । इन छहों में से किसी भी एक का प्रयोग करने पर प्राकृत-साहित्य में 'के समान' अथवा 'की तरह' का अर्थ अभिव्यक्त होता है। कम से उदाहरण इस प्रकार है:- कुमुदम् = मिव चन्द्र से विकसित होन वाले कमल के समान चन्यनम् इव चन्द पिवचन्दन के समान हंसः इव हंसो साभरोव सागर के समान; क्षीरोदः इव खीरोमो = क्षीरसमुद्र के समान शेषस्य निर्मोकः इव से सत्य निम्मोओ व शेषनाग को कंचुली के समानः कमलम् = कमलं बिअकमल के समान और पक्षान्तर में 'नीलोत्पल-माला नीलुप्पल-मालाइ अर्थात् नीलोत्पल-कमलों की माला के समान उदाहरण में संस्कृत के समान ही 'इव' अस्पत का प्रयोग उपलब्ध हूँ । विवहंस के समान सागरः इव
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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