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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [४१५ स्निग्धे वादितौ ॥२-१०।। स्निग्धे संयुक्तस्य नात् पूर्वी अदिती वा भवतः ॥ सशिद्ध सिणिद्ध । पक्षे निद्ध। अर्थः-संस्कृत शब्द 'स्निग्ध के प्राकृत रूपान्तर में संयुक्त व्यञ्जन 'न' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'स' में वैकल्पिक रूप से कभी श्रागम रूप 'अ' को प्राप्ति होती है अथवा कभी पागम रूप 'इ' की प्राप्ति भी वैकल्पिक रूप से होती है। जैसे:-स्निग्धम् = सणिद्ध अथवा सिणिद्ध; अथवा पक्षान्तर में निद्ध रूप भी होता है। स्निग्धम् संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप सणिद्ध, सिणिद्ध और निद्धं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-१०६ से संयुक्त व्यञ्जन 'न' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यकमन 'स' में वैकल्पिक रूप से प्रोगम रूप 'अ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; २-० से 'ग' का लोप; २-८८ से शेष 'ध' को द्वित्व 'ध' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'धू' के स्थान पर 'इ' को प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारान्न नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप साणि सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप-(स्निग्धम् =) सिणिद्धं में सूत्र संख्या २-१० से संयुक्त व्यञ्जन 'न' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'स' में वैकल्पिक रूप से पागम रूप 'इ' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप सिणिचं भी सिद्ध हो जाता है। तृतीय रूप-(स्निग्धम् =) निद्ध में सूत्र-संखयो ५-७७ से हलन्त 'स' का लोप और शेष साधनि का प्रथम रूप के समान ही होकर तृतीय रूप निद्ध भी सिद्ध हो जाता है।॥२.१०६।। कृष्णे वर्णे वा ॥२-११०॥ कृष्ण वर्णे वाचिनि संयुक्तास्यान्त्यव्यञ्जनात् पूर्वी अदिती वा भवतः ॥ कसणो कसिलो कराहो । वर्ण इति किम् ।। विष्णों कएहो ।।। ___ अर्थ:--संस्कृत शब्द 'कृष्ण' का अर्थ जब 'काला' वर्ण वाचक हो तो उस अवस्था में इसके माकृत रूपान्तर में संयुक्त व्यञ्जन 'ण' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'प में वैकल्पिक रूप से श्रागम रूप 'अ' की प्राप्ति होती है अथवा कभी वैकल्पिक रूप से पागम रूप 'ई' की प्राप्ति होती है। जैसे:-कृष्ण: =(काला वर्णीय) = कसणो अथवा कसिणो ।। कभी कभी करहो भी होता है। प्रश्नः-मूल सूत्र में 'वर्ण'-(रंग वाचक)-ऐसा शब्द क्यों दिया गया है ! उत्तरः-संस्कृत साहित्य में 'कृष्ण' शब्द के दो अर्थ होते है। एक तो 'काला-रंग' वाचक अर्थ होता है और दूसरा भगवान कृष्ण-वासुदेव वाचक अर्थ होता है। इसलिये संस्कृत मूल शब्द 'कृष्ण' में
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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