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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [४११ 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर गिलाणं रूप सिद्ध हो जाता है। म्लायति संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप मिलाइ होता है। इसमें सूत्रसंख्या १-२०६ से ' के पूर्व में स्थित हजर ध्यान श्राप रूप इ' की प्राप्ति; १.१७७ से 'य' का लोप; १-१० से लोप हुए 'यू' में से शेष रहे हुए स्वर 'अ' का लोपः ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मिलाइ रूप मिद्ध हो जाता है। म्लानम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप मिलाणं होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-१०६ से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्न व्यञ्जन 'म् में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'रण' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर मिलाणं रूप सिद्ध हो जाता है। __ क्लाम्यति संस्कृत क्रिया पद का रूप है। इसका प्राकृत रूप फिलम्मइ होता है । इसमें सूत्रसंख्या २-१०६.से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त ग्यजन 'क' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति; १-८४ से 'ला' में स्थित दीर्घ स्वर 'श्रा' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति; २-५८ से 'य्' का लोप; २-८८ से शेष 'म' को द्वित्व 'म्म' की प्राप्ति; और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फिलम्मइ रूप सिद्ध हो जाता है। क्लान्तम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप किलन्तं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-१०६ से 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'क' में बागम रूप 'इ' की प्राप्ति; १८१ से 'ला' में स्थित दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर किलन्त रूप सिद्ध हो जाता है। क्लमः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कमो होता है। इसमें मूत्र संख्या २-७ से 'ल' का लोप; और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कमो रूप सिद्ध हो जाता है । प्लयः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप पवो होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३-७६ से 'ल' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर यो रूप सिद्ध हो जाता है। विप्लव संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रुप विप्पयो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७ से 'ल' का लोप: २.८ से शेष 'प' को द्वित्व 'प' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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