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________________ ४०८ ] तप्तः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप तविश्र और तत्तो होते हैं। इन में से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २- १०५ से हलन्त व्यञ्जन 'प' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति १-१३१ से प्राप्त प' में स्थित 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'त' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप तार्य सिद्ध हो जाता है । * प्राकृत व्याकरण * द्वितीय रूप- (तप्त:-) तत्तो में सूत्र- संख्या २-७७ से हलन्त व्यञ्जन 'प' का लोपः २८६ से शेष द्वितीय 'त' को दित्र 'त' को प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो प्रत्यय की प्राप्ति हो कर द्वितीय रूप तत्तों भी सिद्ध हो जाता है । वज्रम संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप वइरं और वज्र्ज होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्रप्राप्ति; १९७७ से प्राप्त 'जि' में स्थित 'ज्' अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के अनुस्वार होकर प्रथम रूप वरं सिद्ध हो संख्या २०१०५ से हलन्त व्यञ्जन 'ज' में आगम रूप 'इ' की व्यञ्जनका लोप; ३-२४ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राम 'स' का जाता हूँ । द्वितीय रूप व की सिद्धि सूत्र संख्या १-१७० में को गई है । ||२-१-५|| लात् ॥ २-१०६ ॥ संयुक्तस्यान्त्यव्यञ्जनान्लात्पूर्व इद् भवति || किलिन्नं । किलिङ्कं । सिलिट्टे । पिलुट्ठ I पिलोसो | सिलिम्हो | सिलेसो । सुविकलं । सुद्दलं । सिलो प्रो। किलेसी । श्रम्बिलं । गिलाइ | गिलाणं । मिलाइ | मिलाणं । किलम्म | किलन्तं ॥ कवचित्र भवति || कमो । पवो । faat | सुक्क पक्खो || उत्प्लावयति । उप्पावे || I वर्ण अवश्य हो तो = = अर्थः-जिन संकृत शब्दों में ऐसा संयुक्त व्यञ्जन रहा हुआ हो; जिसमें 'ल' ऐसे उस 'ल' वर्ण सहित संयुक्त व्यञ्जन के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन में श्रागम रूप 'इ' की प्राप्ति प्राकृत रूपान्तर में होती है । कुछ उदाहरण इस प्रकार है: --क्लिन्नम् = किलिन्नं ॥ क्लिष्टम् = किलिट्ट | श्लिष्टम = मिलिदु | प्लुटम् - पिलुट्ठ । प्लोषः - पिलोसो | इलेष्मा = सिलिम्हो || श्लेषः - सिलेसो ॥ शुक्लम् = सुक्किलं । शुक्तम् = सुइलं || श्लोकः = सिलियो । क्लेशः किलेस || आम्लम् = अम्बिलं || ग्लायति = गिलाइ || ग्लानम् = गिलाएं | म्लायति = मिलाइ || म्लानम् = मिलाणं || क्लाम्यति = किलम्मइ ॥ नलान्तम् = किलन्तं । किसी-किसी शब्द में संयुक्त व्यञ्जन वाले 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त श्यञ्जन में आगम रूप 'ह' की प्राप्ति नहीं भी होती है। जैसे:-कलम: कमो || प्लवः पयो || विप्लवः = विप्पयो || शुक्लपक्षः = सुक्क पक्खो || और उत्त्तावयति = उप्पावेद ॥ इत्यादि । इन उदाहरणों में 'ल' का लोप हो गया हूँ; परन्तु 'ल' के पूर्व में स्थित हलन्त व्यञ्जन में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति नहीं हुई है । यो सर्व-स्थिति को ध्यान रखना चाहिये || = : 1 1. }
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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