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________________ ४०४ ] वह संस्कृत रूप है। इस का प्राकृत रूप चरिहो होता हैं । इप में सूत्र संख्या २ १०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ह' में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'र' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर बरिही रूप सिद्ध हो जाता है । * प्राकृत व्याकरण * +++++. श्री संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सिरो होता है। इस में सूत्र संख्या २ १०४ से संयुक्त व्यञ्जन श्री में स्थित हलन्त व्यञ्जन 'श' में आग रूप 'इ' की प्राप्ति और १२६० से प्राप्त 'शि' में स्थित 'श' का 'स' होकर सिरी रूप सिद्ध हो जाता 1 संस्कृत रूप है | इसका प्राकृत रूप हिरी होता है। इस में सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ही' में स्थित पूर्व' हलन्त व्यञ्जन 'ह' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति और २००८ से दीर्घ कारान्त स्त्रीलिंग में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति; तदनुसार वैकल्पिक पक्ष होकर प्राप्त 'आ' प्रत्यय का अभाव होकर हिरा रूप सिद्ध हो जाता है । ह्रीतः संस्कृत विशेष रूप है। इसका प्राकृत रूप हिरोओ होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'ही' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'ह' में श्रागम रूप 'ह' की प्राप्तिः १-२७७ से 'तू' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय 'प्राप्ति होकर हिओ रूप सिद्ध हो जाता है। अकः संस्कृत विशेषण रूप हैं । इसका प्राकृत रूप अहिरीयो होता है। इसकी साधनिका में 'हिरीयो' उपरोक्त रूप में प्रयुक्त सूत्र ही लगकर अहिरीभी रूप सिद्ध हो जाता है। कसिणों रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २७५ में की गई हैं। या संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप किरिया होता है । इममें सूत्र संख्या २०१०४ से संयुक्त व्यञ्जन 'कि' में स्थित पूर्व हलन्त व्यञ्जन 'क' में आगम रूप 'इ' की प्राप्ति और १-१७७ से 'य' का लोप होकर किरिओ रूप सिद्ध हो जाता है। हयं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १- २०६ में की गई है। ज्ञानम, संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप नाणं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-४२ से 'ज्ञ' के स्थान पर 'श' की प्राप्ति; प्राकृत व्याकरण में व्यत्यय का नियम साधारणतः है; अतः तदनुसार प्राप्त 'ए' का और शेष 'न' का परस्पर में व्यत्ययः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर नाणं रूप सिद्ध हो जाता है ।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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