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________________ * प्राकृत व्याकरण * मूक्ष्मम् संस्कृत विशेषण रूप है। इसका श्राप-प्राकृत रूप सुहम होता है। इसमें सूत्र संख्या १.८४ से दीर्घ स्वर 'अ' के स्थान पर हस्व स्वर '3' की प्राप्ति; २-१-१ की वृत्ति से हलन्त व्यञ्जन "च' में श्रागम रूप 'अ' की प्राप्ति और आप रूप होने से ( सूत्राभावात् ) प्राप्त 'क्ष' के स्थान पर 'इ' रूप साहरा की नील३.२५ मा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५-६३ से प्राप्त 'म्' का अनुम्बार होकर 'आर्ष-प्राकृत रूप सुहम सिद्ध हो जाता है। ॥२-१०।। स्नेहाग्न्यो । २-१०२ ॥ अनयोः संयुक्तस्यान्त्य व्यञ्जनात् पूर्वोकारो वा भवति ।। सणेहो । नेहो | अगणी । अम्गी ॥ अर्थः-संस्कृत शब्द 'स्लेह' और 'अग्नि' में स्थित संयुक्त व्यञ्जन के अन्त्य (में स्थित) व्यञ्जन के पूर्व में रहे हुष हलन्त व्यञ्जन में प्राकृत-रूपान्तर में पागम रूप 'अ' की प्राप्ति विकल्प से हुआ करती है। जैसे:-स्नेहः = सणहो अथवा नेहो और अग्निः = अगणी अथवा अग्गी॥ स्नेहः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप सणेहो और नेहो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या--२-१०२ से हलन्त व्यञ्जन 'स' में वैकल्पिक रूप से आगम रूप 'अ' को प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सणेही रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप नेहो की सिद्धि सूत्र-संख्या २-७७ में की गई है। अग्निः संस्कृत रूप है । इस के प्राकृत रूप अगणी और अग्गी होते हैं। इन में से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या :-१८२ से हलन्त व्यञ्जन 'ग' में वैकपिक रूप से आगम रूप 'अ' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान 'ण' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में इकारन्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप अगणी सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप- (अग्निः = ) अग्गी में सूत्र संख्या २-७८ से 'न' का लोप; २-२६ से शेष 'ग' को द्विस्व 'ग' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक धचन में इकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप अग्गी भी सिद्ध हो जाता है । २-१०२ ।। प्लो लात ॥२-१०३॥ प्लक्ष शब्दे संयुक्तस्यान्त्यव्यञ्जनानात् पूर्वोदू' भवति ॥ पलक्खो ।।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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