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________________ ३६८ } * प्राकृत व्याकरण * 'इ' की प्राप्ति;३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप नेचुम् सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप नीड की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१०६ में की गई है। नक्खा और नहा दोनों रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या २०६० में को गई है। निहितः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप निहितो और निहिओ होते है। इन में से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या-२-६ से अन्य व्यञ्चन 'त' के स्थान पर द्वित्व 'त' की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप निहितो सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप- (निहितः= ) निहिओ में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'या' प्रत्यय की प्राप्ति होकर. द्वितीय रूप निहिओ भी सिद्ध हो जाता है। व्याहृतः संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप वाहितो और बाहिओ होते हैं। इन में से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २--- से 'यू' का लोप; १-१२८ से 'ऋ के स्थान पर 'इ' को प्राप्ति २.६६ मे अन्त्य व्यञ्जन 'त' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से द्वित्व त्त की प्राप्नि और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप पाहतो सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(व्याहृतः=) याहिमो को सावनिको में प्रथम रूप के समान ही सूत्रों का व्यवहार होता है । अन्तर इतना सा है कि सूत्र-संख्या २-6 के स्थान पर सूत्र संख्या १-१७७ से अन्स्य व्यवन 'त' का लोप हो जाता है। शेष क्रिया प्रथम रूप बत् ही जानना। मृदुकम् संस्कृत विशेषण रूप है । इस के प्राकृत रूप माउक और माउचं होते है। इनमें से प्रथम रुप माउथं की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२७ में की गई है। द्वितीय रूप-(मृदुकम् ) माउभं में सूत्र-संख्या १-१२७ से 'ऋ' के स्थान पर 'श्रा' की प्राप्ति; १-१७७ से 'द्' और 'क' दोनों व्यजनों का लोप; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की पाप्ति और १-.३ से प्राप्त 'म्' प्रत्यय का अनुस्वार हो कर द्वितीय रूप माउभं भी सिद्ध हो जाता है। एकः संस्कृत संख्या वाचक विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप एको और एमओ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सत्र संख्या २-६६ से अन्त्य व्यन्जन 'क' को वैकल्पिक रूप से द्वित्व 'क' की प्राप्ति और द्वितीय रूप में मना गंख्या १-१७७ से 'क' का लोप एवं दोनों ही रूपों में ३-२ से प्रथमा विभक्ति
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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