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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * _ [३८७ . . . . . . . . . . . दीर्घ शब्दे शेषस्य धस्य उपरि पूर्वो वा भवति ॥ दिग्पो दीहो ॥ अर्थ:--संस्कृत शब्द 'दीर्घ के प्राकृत-रूपान्तर में नियमानुसार रेफ रूप 'र' का लोप हान के पश्चात् शेष व्यञ्जन 'घ' के पूर्व में ('घ' क) पूव व्यम्जन 'ग' की प्राप्ति विकल्प से हुआ करती हैं जैसेदीर्घः दिग्धों अथवा दीहो । दीर्घः संस्कृत विशेषण रूप है । इसकं प्राकृत रूप दिग्धो और दीही होते है । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-८४ से दीर्घ स्वर 'ई' के स्थान पर हस्व स्वर 'इ' की प्राप्ति; 2-0 से 'र' का लोप; ६.६१ से 'ए' के पूर्व में 'ग' की प्राप्ति और ३.५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त मुल्लिग 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय को प्राप्ति होकर प्रथम रूप दिग्धी सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप-(दोघ) दीही में सूब-संख्या २-७१ से 'र' का लाप; १-१८७ से '' के स्थान पर 'ह' को प्राप्ति और ३-२ से प्रथम रूप के समान ही 'यो' प्रत्यय को प्राप्ति होकर द्वितीय रूप दीही भी सिद्ध हो जाता है ।।२-६१|| न दीघीनुस्वारात् ।।२-६२।। दीर्धानुस्वाराभ्यों लावणिकाभ्यामलाक्षणिकाभ्यां च परयोः शेषादेशयोत्विं न भवति । छूढो । नीसासो । फासो ।। अलाक्षणिक । पार्श्वम् । पायं ।। शीर्षम् । सोसं ॥ ईश्वरः। ईससे ।। द्वेष्यः । वेसो । लास्थम् । लास ॥ प्रास्यम् । श्रासं। प्रेष्यः । पेसो ॥ अवमान्यम् । भोमार्ल ॥ प्राज्ञा । आणा। आज्ञप्तिः ! आणती ॥ प्राज्ञपनं । आणवणं ।। अनुस्वारान् । व्यस्त्रम् । तंसं अलाक्षणिक | संझा । विभो । कंसाली ।। अर्थ:-अदि फिसो संस्कृत शब्द के प्राकृत-रूपान्तर में किसी वर्ण में दीर्घ स्वर अथवा अनुस्वार रहा हुश्रा हो और उम दीर्घ स्वर अथवा अनुस्वार की प्राप्ति चाहे ज्याकरण के नियमों से हुई हो अथवा चाह उस शब्द में हो प्रकृति रूप से ही रही हुई हो और ऐसी स्थिति में यदि इस दीर्घ स्वर अथवा अनुस्वार के आगे नियमानुमार लोप हुए वर्ण के पश्चात शेष रह जाने वाला वर्ण आया हुआ हो अथवा आदेश रूप से प्राप्त होने वाला वणं आया हुआ हो तो उम शेष वर्ण को अथवा आदेश-प्राप्त वर्ण को द्वित्व-भाव की प्राप्ति नहीं होगी । अर्थात ऐसे वर्गों का द्वित्व नहीं होगा ! दीर्घ स्वर संबंधी उदाहरण इस प्रकार है:-क्षिप्तः = छूढो । निःश्वासः-नीसासों और पर्शः फासो में इन उदाहरणों में स्वर में दीर्घता व्याकरण के नियमों से हुई है। इसलिये ये उदाहरण लाक्षणिक कोटि के हैं। अब ऐसे उदाहरण दिये जा रहे हैं, जो कि अपने प्राकृतिक रूप से ही दीर्घ स्वर वाले हैं; ये उदाहरण प्रलाक्षणिक कोटि के समझे जोय । पारर्यम्-पास ।। शीर्षम्-सीसं | ईश्वरः = ईसरो ॥ द्वेष्याम्बेसी॥ लास्यम्= लासं || श्रास्यम्-प्रासं।। भेभ्यः पेसो ॥ अवमाल्यम्-प्रोमालं ॥ प्रामाश्रोमा ।। श्राप्तिः आणत्ती ॥ श्राझपनं-भाषवर्ष ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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