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________________ ___ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [१५ लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर ऊरुजु रूप सिब हो साता है। तदेव संस्कृत सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप तं एव होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ (संस्कृत मूल रूप तत् में स्थित ) अन्त्य व्यञ्जन 'तू' का लोप; ३.२५ से प्रयमा विभक्ति के एक वचन में अक्षाराम्स नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार और 'एव' को स्थिति संस्कृत वत् ही होकर तं एवं रूप सिद्ध हो जाता है। मृदित बिस दण्ड विरसम संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मलिअ-बिस-वा-विरसं होता है। इसमें सूत्र संख्या ४.१२६ से 'मृद्'ानु के स्थान पर 'मल' आदेशः ३-१५६ से प्राप्त रूप 'मल' में विकरण प्रत्यप रुप'' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त्' का खोप; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में मसक लिंग में सिं प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर मलिभ-विस-दण्ड-विरसं रूप सिद्ध हो जाता है। अलक्षयामह ाका पराकम है। इसका प्राकृत ख्य आलक्खिमो होता है। इसमें सूत्र-संस्था २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'स्व' को द्वित्व 'ख' को प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' के स्थान पर 'क' की प्राप्तिः ४-२३९ से हलन्त 'भातु' आलवखे में बिकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति ३-१५५ सं 'ख' में प्राप्त 'अ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; और ३.१४४ से उत्तम पुरुष याने तृतीय पुरुष के महूवचन में वर्तमान काल में 'मह' के स्थान पर 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आलक्खिमो रूप सिद्ध हो जाता है। इदानीम संस्कृत अपय है । इसका प्राकृत रूप एहि होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१३४ से संपूर्ण 'अध्यय रूप' 'इदानीम् ' के स्थान पर प्राकृत में 'एण्हि' आवेश की प्राप्ति होकर 'एम्हि रूप सिद्ध हो जाता है। अहो ! संस्कृत अव्यय है । इसका प्राकृत रुप भी 'महो' ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-२१७ को त्ति से 'अहो' रूप को यथा-स्थिति संस्कृत बस् ही होकर 'अहो' अव्यय सिद्ध हो जाता है। आश्चर्यन संस्कृत का है । इसका प्राकृत रूप अच्छरिस होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'आ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; २-२१ से 'इच' के स्थान पर 'छ' को प्राप्ति; २-८१ से प्राप्त 'छ' को द्वित्व 'छछ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व '' के स्थान पर 'च' को प्राप्ति २-६७ सम के स्थान पर "रिअ' आदेश और १-२३ से हलन्त अन्त्य 'म्' को अनुस्वार की शान्ति होकर प्राकृत रूप 'अच्छरि सिख हो जाता है। अालोचन-तरला संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप अत्पासोअग-सरला होता है। इसमें सूत्रसंख्या २-७९ से रेफ रूप हलन्त 'र' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'र' के पश्चात् क्षेप रहे एए '' को द्विस्व 'थ्य की प्राप्ति: २-९० से प्राप्त पूर्व '' के स्थान पर 'त' की प्राप्ति; १-५ से प्राप्त 'मत्व के अन्रय 'अ' को भाग रहे हए 'आलोचन = आलोअण' के आदि 'आ' के साथ संधि होकर 'अस्था' रूप को प्राप्ति: १-७७...
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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