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________________ ३६६ ] * प्राकृत व्याकरण * छप्पो रूप को सिद्धि सूत्र-संग्ख्या १-०६५ में की गई है। कदफलम, संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप करफलं होता है । इसमें सूत्र-संख्या-२-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'द' वर्ण का लोप; २. से शेष रहे हुए फ' को द्वित्व ‘फ फ.' की प्राप्ति; २०६० से प्राप्त पूर्व 'फ्' को 'प' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कप्फलं रूप मिद्ध हो जाता है। खग्गो रूप की सिद्धि सूत्र-सरळ्या १-३४ में की गई है। पड्ज संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप मज्जो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १२६० से 'प' का 'स'; २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'ड' वर्ण का लोप; -८६ से शेष रहे हग 'ज' को द्वित्व 'जज' को प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभकिन के एक बचम में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर सज्जी रूप सिद्ध हो जाता है। उत्पलम् संस्कृत रूप है । इम का प्राकृत रूप उप्पल होता है । इस में सूत्र-संख्या २-७७ से पूर्व स्थ एवं हलन्त त ' वर्ण का लोप; P-2 से शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'पप' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रश्रमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर उध्पलम रूप सिद्ध हो जाता है। उत्पात: संस्कृत रूप है । इस का प्राकृत रूप उत्पाश्रो होता है। इस में सूत्र-मख्या २.७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'त' वर्ण का लोप; २-८६ से शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'पघ' की प्राप्ति, १-१४७ से द्वितीय 'त' का लोप और ३.६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर उप्पाओ कप सिद्ध हो जाता है। मदगुः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप मग्गू होत है । इम में सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्थ एवं हलन्त 'द्' वर्ण का लोप; २-८८ सं शेष रहे हुए 'ग' वर्ण का द्विस्व गग' की प्राप्ति और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर द्वस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ की प्राप्ति होकर भागू रूप सिद्ध हो जाता है। मोग्गरो रूप की सिद्धि रान-संख्या १-११६ में की गई है। सप्तः संस्कृत विशेषण रूप है। इस कामाकृत रूप सुत्तो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७७ से पूर्वस्य एवं हलन्त 'प' वर्ण का लोप; २-८६ से शेष रई हुए 'त' वर्ण को द्वित्व 'त' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सुत्तो रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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