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________________ ३५८] * प्राकृत व्याकरण * पूर्व 'ज्' को 'क' की प्राप्ति और ३११ से मूल रूप 'तुकरव' में सप्तमी विभक्ति के एक वचन में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पर-दुक्खे रूप सिद्ध हो जाता है। दुःखिताः संस्कृत विशेषण रूप है । इम का प्राकृत रूप दुनिग्वा होता है । इम में सूत्र-संख्या २-७७ से जिल्हा मूलीय चिह्न 'क' का लोप; २-८६ से 'ख' को द्वित्व 'ख' की प्राप्ति; २.६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त ' का लोप; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में प्राप्त ' जस्' प्रत्यय का लोप और ३-१२ से लुप्त 'त्र संघ रद्दे हु. ( ल संत होने से इस्त्र स्वर 'अ' को दीघ स्वर 'या' को प्राप्ति होकर इक्षिा रूप सिद्ध हो जाता है । विरला संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप चिरला होता है । यह मूल शरः 'विरल होते.से अकारांत है । इम में सूत्र-संख्या ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में पुल्लिंग अकारान्त में प्राप्त 'जस' प्रत्यय का लोप और ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस' प्रत्यय के कारण से अन्त्य हस्व म्बर 'अ' को दीर्घ स्वर 'श्रा' को प्राप्ति हो कर विरला रूप सिद्ध हो जाता है। दाहिणो और दक्षिणो रूपों को सिद्धि सूत्र-संख्या १- ४५ में की गई है। तृह रूप को सिद्धि सूत्र-संख्या १-१०४ में की गई है। तित्थं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८४ में की गई है। ॥ २--७२ ।। कूष्माण्ड्यां मो लस्तु ण्डो वा ॥२-७३॥ कूष्माण्ख्यां मा इत्येतस्य हो भवति । एड इत्यस्य तु वा लो भवति ।। कोहली कोहण्डी ॥ __ अथ:--संस्कृत शब्द कूष्माण्डी में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'मा' के स्थान पर 'ह' रूप श्रादेश की प्राप्ति होती है तथा द्वितीय संयुक्त व्यञ्जन एड' के स्थान पर विकल्प से 'ल' की प्राप्ति होती है। जैसे:-कूष्माण्डी = कोहली अथवा कोहण्डी ।। वैकल्पिक पक्ष होने से प्रथम रूप में 'एड' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति हुई है और द्वितीय रूप में 'एड' का 'ए' हो रहा हुआ है। यो स्वरूप मेद जान लेना चाहिये । कोहली और कोहण्डी रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-१२४ में की गई है। ।। २-७३ ।। पक्ष्म--श्म-म-स्म-हमां म्हः ॥ २--७४ ॥ पक्ष्म शब्द संबन्धिनः संयुक्तस्य श्मष्मस्मनां च मकाराकान्तो हकार आदेशो भवति ॥ पक्ष्मन । पम्हाई' । पम्हल-- लोमणा || श्म । कुश्मानः। कुम्हाणो ॥ कश्मीराः । कम्हारा || मा ग्रीष्मः । गिम्ही । ऊष्मा । उम्हा ॥ स्म । अस्मादृशः। अम्हारियो । विस्मयः । बिम्हश्रो ॥ छ । ब्रह्मा । धम्हा ॥ सुझाः। सुम्हा 11 बम्हणो। बम्हचेरं ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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