SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ સરસ્વતિહેન મણીલાલ શાહ प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * - अचम् = 'ओ' के पश्चात् 'म आने पर भी इनकी परस्पर में संधि नहीं हुमा करती है । मही अच्छरिस प्रश्न:-'ए' अथवा 'ओ' के पश्चात् आने वाले स्वरों को परस्पर में संधि नहीं होती है'-ऐसा क्यों कहा गया है? उत्तर:-अन्य सजातीय दरों को संषि हो जाती है एवं 'अ' अथवा 'मा' क पश्चात् आने वाले '' अपवा 'उ' की संधि भी हो जाया करतो जैसे-गया दितीय में आया है कि-'अपज्जत+म' = अपाजतेमा बस अपहास = वन्तावहास । माथा तृतीय में आया है कि-मस्थ + आलोग = अत्यालो प्रजा याजियो अन्य स्वरों को संधि-स्थिति एवं 'ए' मथवा 'ओ' की संधि-स्थिति का अभाव बतलाने के लिये 'ए' अथवा 'मों काल में उल्लेल किरा गया है। तुतीय गाया की संस्कृत छाया इस प्रकार हैं: अर्थालोचन-तरला इतर कवीनां भ्रमन्ति बुद्धयः । अर्थाएव निरारम्भं यन्ति हृदयं कवीन्द्राणाम् ॥ ३ ।। पकाया:-संस्कृत षष्ठयन्त रूप है । इसका प्राकृत रूप बहुभाइ होता है । इसमें सूत्र-- संश-१-१८७ से 'ब' के स्थान पर 'ह' को प्राप्ति १-४ दीर्घ के स्थान पर हस्य 'उ' ३-२९ से षष्ठी विभक्ति के एक पचन में सकारात स्त्रीलिंग में 'पा' प्रत्या के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-१७. सेब का लोर होकर बहुभाई रूप सिद्ध हो जाता है । नरखाल्लेव ने संस्कृत सप्तम्यन्त रूप। इसका प्राकृत रूपमल्लिहले होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से दोनों स्न' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; १-८४ से 'ओ' के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' को प्राप्ति; १.१४६ से प्रथम 'ए के स्थान पर की प्राप्तिः १-२२८ ले 'न' ने स्थान पर 'ग' की प्राप्ति और ३.११ से सप्तमी विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिा में संस्कृत प्रत्यय 'हि' के स्थानीय रूप 'द' के स्थान पर माकुन में भी 'ए' को प्राप्ति होकर मल्लिणे रूप सिब हो जाता है। आवघ्नत्याः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप आवग्धतीए होता है । इसमें सत्र संख्या १-२६ से '' व्यस्मन पर भागम रूप अनुस्वार को प्राप्ति; १.३० से प्राप्त अनुस्वार के आगे 'घ' व्यजन होने से अनुस्वार; के स्थान पर '' को प्राप्ति, ३-१८. से संस्कृत के समान ही प्राकृत में भी वर्तमान कुडन्त के अर्थ में 'न्त' प्रत्यय को प्राप्ति; ३.१८२ से प्राप्त 'त' प्रत्यय में स्त्रीलिंग होने से 'ई' प्रत्यय को प्राप्ति तरनुसार 'न्ती' की प्राप्ति; और पळी विभक्ति के एक बंधन में इकारान्त स्त्रीलिंग में ३-२९ से संस्कृत प्रत्यय 'स' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आफन्वन्तीए कप सिब हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy