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________________ ३४२ ] # प्राकृत व्याकरण * ___ अर्थ--संस्कृत शब्द 'चिह्न' में रहे हुए मंयुक्त व्यञ्जन 'ह' के स्थान पर विकल्प से 'ध' को प्राप्ति होती है। सूत्र-संख्या २-७५ में यह बतलाया गया है कि संयुक्त व्यजन के स्थान पर 'राह' को प्राप्ति होती है । तदनुसार सूत्र-संख्या २.७५ की तुलना में सूत्र-संख्या २-५० को अपवाद रूप सूत्र माना जाय ऐसा वृत्ति में उल्लेख किया गया है। बैकल्पिक पक्ष होने से तथा अपवाद रूप स्थिति की उपस्थिति होने से 'चिह्न' के प्राकृत रूप तीन प्रकार के हो जाते हैं; जो कि इस प्रकार है.-चिह्नम् चिन्धं अथवा इन्धं थिए । चिन्हमः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप चिन्धं. इन्धं और चिराहं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २५० से संयुक्त व्य-जन 'ह' के स्थान पर विकल्प से 'ध' की प्राप्ति; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप चिन्धं सिद्ध हो जाता है। जिीन रूपम की सिद्ध सूत्र जथा- की गई है। तृतीय रूप चिप में सूत्र-संख्या २.७५ से संयुक्त व्यञ्जन 'ए' के स्थान पर 'राह' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर तृतीय रूप चिण्ह मी सिद्ध हो जाता है ।।२-५८३) भस्मात्मनोः पो वा ॥२-५१॥ अनयोः संयुक्तस्य पो वा भवति ।। भयो भस्सो । अप्पा अप्पाणो । पक्षे अत्ता ॥ अर्थ-संस्कृत शब्द 'भस्म में स्थित संयुक्त व्यञ्जन 'स्म' के स्थान पर बिकल्प से 'प' की प्राप्ति होती है। जैसे:-(भस्मन् के प्रश्रमान्त रूप) भस्मा-भप्पो अथवा भन्सी ।। इसो प्रकार से संस्कृत शब्द 'आत्मा' में स्थित संयुक्त व्यञ्जन 'त्म' के स्थान पर भी विकल्प से 'प' की प्राप्ति होती है। जैसे-- (आत्मन् के प्रथमान्त रूप) श्रास्मा अप्पा अथवा अपाणो । वैकल्पिक पन होने से रूपान्तर में 'असा' भी होता है। भस्मन संस्कृत मूल रूप है । इसके प्राकृत रूप भापो और भस्सो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-५१ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्म' के स्थान पर विकल्प से 'प' की प्राप्ति; २ से प्राप्त 'प' को द्वित्व 'प्प की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य हलन्त व्यन्जन 'न' का लोप; १-३२ से 'भस्माद को पुल्लिगत्व की प्राप्ति होने से ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप भयो सिद्ध हो जाता है। - द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या २-४८ से 'म्' का लोप; २-८६ से शेष 'स' को द्वित्व 'स' की प्राप्ति और शेष साधानेका प्रथम रूप के समान हो होकर द्वितीय रूप भस्सो भी सिध्द हो जाता है। आत्मन् संस्कृत मूल शब्द है। इसके प्राकृत रूप अप्पा, अपाणो और अता होते हैं। इनमें से
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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