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________________ ३४५ ] स्तम्बः संस्कृत रूप है | इसका प्राकृत रूप तम्बो होता है। इस में सूत्र संख्या २-७७ से 'स' का खोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तम्बों रूप सिद्ध हो जाता है ।। २२४५ ।। * प्राकृत व्याकरण * स्तत्रेथा ।। २--४६ । स्तव शब्दे स्तस्य श्री वा भवति ।। श्रवी तत्रो || अर्थ:- 'स्व' शब्द में रहे हुए संयुक्त व्यजन 'स्त' के स्थान पर विकल्प से 'थ' की प्राप्ति होती | जैसे:- स्तवः थवी अथवा तयो || 1 स्तवः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप थवो और तवां होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-४६ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्त' के स्थान पर विकल्प से 'थ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप थवा सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में सूत्र संख्या २७७ से हलन्त व्यञ्जन "स्' का लोप और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही हो कर ती रूप सिद्ध हो जाता है | |१२-४६|| पर्यस्ते - ॥ २-४७ ॥ पर्यस्ते स्तस्य पर्यायेण थटो भवतः || पल्लत्थो पल्लो || अर्थ:-संस्कृत शब्द 'पर्यस्त' में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'श्त' के स्थान पर कमी 'थ' होता है, और कभी 'ट' होता है । यों पर्यस्त के प्राकृत रूपान्तर दो प्रकार होते हैं; जो कि इस प्रकार हैं:-- पर्यस्तपन्थो और पल्लट्टो || पर्यस्तः संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप पल्लत्थो और पल्लट्टो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या २-६८ से संयुक्त व्यक्जन 'ये' के स्थान पर द्वित्व 'ल्ल' की प्राप्ति; २-४७ से संयुक्त व्यञ्जन 'स्त' के स्थान पर पर्याय रूप से 'थ' की प्राप्ति २-८६ से प्राप्त 'थ' को द्वित्व 'थ' की प्राप्ति; २०६० से प्राप्त पूर्व 'थ' को 'त' की प्राप्ति और ३-२ ले प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर प्रथम रूप पल्लत्थी सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप पल्लो में सूत्र संख्या २-६५ से संयुक्त व्यव्जन 'र्य' के स्थान पर द्वित्व 'ल्ल' की प्राप्ति २-४७ से संयुक्त व्यंजन 'रस' के स्थान पर पर्याय रूप से 'ट' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'ट' को 'द्वित्व 'ट्ट' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप समान ही होकर द्वितीय रूप पल्लट्टो भी सिद्ध हो जाता है ।। २-४७ ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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