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________________ * प्राकृत व्याकरण * '' की प्राप्ति होकर मुण्डा रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप मुद्धा में सूत्र-संख्या १-८४ से दांघ स्वर 'के स्थान पर हस्व स्वर 'उ' को प्रापि २-६ से 'र' का लोप; २.६६ से शेप 'ध' को द्वित्व 'धय' की प्रामि और २.६.० से पाभ पूर्व ध्' को 'द' की प्राप्ति होकर मन्द्रा रूप सिद्ध हो जाता है। अधम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप अड्डे और अद्धं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-११ से अन्त्य संयुक्त च्यवन 'ध' के स्थान पर 'द' की प्राप्तिः २-८६ मे प्राप्त 'ढ' को द्वित्व 'द है' की प्राप्ति; ६० से पात पूर्व 'ब' को 'इ' को प्राप्रि; ३-२५ से प्रथमा विभक्त के एक वचन में यकारान्त नपुंसक लिंग में 'मि प्रत्यम के स्थान पर 'म् प्रत्यम की प्राप्ति और '२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर प्रथम रूप अट्ठ सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र-मंख्या -७६ से 'र' का लोप; २.८ से शेष 'ध' को द्वित्व 'ध ध' का. प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'धू' को 'द' की प्राप्ति और शेष साधनका प्रथम रूप के समान हा होकर द्वितीय रूप अद्ध भी सिद्ध हो जाता है। -४१।। म्नज्ञो र्णः ॥ २-४ ॥ अनयो र्णः भवति ॥ म्न । निएणं । पज्जुण्णो ॥ ज्ञ । णाणं । सगणा। पराणा । विण्णा ॥ अर्थ:-जिन शब्दो में संयुक्त व्यन्जन 'म्न' अथवा 'ज्ञ होता है; उन संस्कृत शब्दों के प्राकृत रूपान्तर में संयुक्त व्यञ्जन 'म्न' के स्थान पर अथवा 'ज्ञ' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति होती है। जैसे:-'न' के उदाहरणः-निम्नम् =निएणं । प्रनम्न = पज्जुएणो। 'ज्ञ' के उदाहरण इस प्रकार है:- ज्ञानम्-कारणं । संज्ञासण्णा । प्रज्ञा-पएण्णा और विज्ञानम् विण्णाणं ।।। निम्नम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकत रूप निएणं होता है। इस में सूत्र-संख्या -४२ से संयुक्त व्य जन 'मन' के स्थान पर 'रण' की प्राप्ति, २८८ से प्राप्त 'ण' का द्वित्व 'गण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर निण्ण रूप सिद्ध हो जाता है। प्राम्नः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप पन्जुएणो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से र का लोप; २-२४ से संयुक्त व्याजन 'ध' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २-म से प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'जज' की प्राप्ति; २-४२ से संयुक्त व्यण्जन 'मन' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; २-८८ से प्राप्त 'ण' को द्वित्व 'एण' की प्राप्ति; और ३-२ से पथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पजपणो रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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