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________________ : : *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [३३१ उष्ट्रः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप उट्ठो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७७ से 'प' का लोप; २-5 से 'र' का लोप; २.८६ से 'ट' को द्विस्य '' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्जिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर उठो रूप सिद्ध हो जाता है। इष्टा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप इट्टा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २७७ से 'ए' का लोप और २-1 से 'ट' को द्वित्व 'दृ' की प्राप्ति होकर इट्टा रूप सिद्ध हो जाता है। चूर्ण संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप चुण्णं होता है । इममें सूत्र-संख्या १-४ से दीर्घस्वर 'ऊ' के स्थान पर हात्र स्वर 'उ' की प्राप्ति; २-६ से 'र' का लोप; २८६ से 'ण' को द्वित्व 'एण' को प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त नपुसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' को अनुस्वार होकर चुण्णं रूप सिद्ध हो जाता है। 'अ' अव्यय की सिद्धि सूत्र-संख्या ५-६ में की गई। संदृष्टः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप संदट्टो होता है । इस में सूत्र-मंख्या २-४७ से 'ए' का लोप; २-८८ से 'ट' को द्वित्व 'दृ' को प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारांत पुल्जिम में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर संदृष्टो रूप सिद्ध हो जाता है ।। २-३४ ।। गर्ने डः ॥२-३५ ॥ गर्स शब्दे संयुक्तस्य डो भवति । टापवादः ॥ गड्डो । गड्डो ।। अर्थः - 'गर्त' शब्द में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन 'त' के स्थान पर '' की प्राप्ति होती है । सू* संख्या २-३८ में विधान किया गया है कि 'त' के स्थान पर 'ट' की प्राप्ति होती है; किन्तु इस सूत्र में 'गत' शब्द के संबंध में यह विशेष नियम निर्धारित किया गया है कि संयुक्त व्यञ्जन 'त' के स्थान पर 'ट' की प्राप्ति नहीं होकर 'ड' की प्राप्ति होती है; अतः इस नियम को सूत्र-संख्या २-३० के विधान के लिये अपवाद रूप निषम समझा जाय । उदाहरण इस प्रकार है:-गतः = गड्डो ।। गताः = गड्डा ।। गबडो और गडा रूपों की सिद्धि सुत्र संख्या ५-३५ में की गई है ।। २-३५ ।। संमद-वितर्दि-विच्छद च्छर्दि-कपर्द-मदिते-दस्य ॥ २-३६ ॥ एषु दस्य डत्वं भवति ॥ संमड्डो । विप्रड्डी । विच्छड्डो । छह । छड्डी । कबड्डो । मड्डिओ संमहिो। . अर्थ:--'समई', वित्तर्वि, बिच्छर्द, छ, कपर्द और मर्दित शब्दों में रहे हुए संयुक्त व्यञ्जन है के स्थान पर 'द' की प्राप्ति होती है । जैसे:- संमदः = संमड्डो। वितर्दिः =विअड्डी । विच्छदः =
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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