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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ ३२६ अर्थः-अ अथवा अत्थो । संस्कृत शब्द 'अर्थ' के दो अर्थ होते है । पहला अर्थ 'प्रयोजन' होता है और दूसरा अर्थ 'धन होता है। तदनुसार 'प्रयोजन' अर्थ में प्रयुक्त संस्कृत रूप 'अर्थ' का प्राकृत रूप होता है और 'धन' अर्थ में प्रयुक्त संस्कृत रूप 'अर्थ' का प्राकृत रूप 'अस्थी' होता है । यह ध्यान में रखना चाहिये । dri और थी दोनों रूपों की सिद्धि सूत्र संख्या १-७४ में को गई है। रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१७१ में को गई है। अर्थः - संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप ( प्रयोजन अर्थ में ) अट्ठो होता है। इसमें सूत्र संख्या २०३३ से संयुक्त व्यञ्जन 'र्थ' के स्थान पर विकल्प से 'ठ' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'ठ' को द्वित्व ठ्ठ की प्राप्ति २६० प्राप्त पूर्व 'ठ' को 'ट' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति हो कर अठो रूप सिद्ध हो जाता है । अर्थ:-संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप (घन अर्थ में ) अथ होता है। इसमें सूत्र संख्या .२-७६ से 'र' का लोप; २-८६ से 'थ' को द्वित्व 'यूथ' की प्राप्ति २६० से प्राप्त पूर्व 'थ को 'तू' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचत में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'थो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अत्थो रूप सिद्ध हो जाता है । ष्टस्यानुष्ट्र संदष्टे ॥ २-३४ ॥ उष्ट्रादिवर्जितेष्टस्य ठो भवति || लड़ी। मुट्ठी । दिट्ठी । सिट्ठी । पुट्ठो । कट्ठे | सुरट्ठा | इट्ठो | अणिट्ठ' । अनुष्ट्रष्टासंदष्ट इति किम् । उट्टी । इङ्का चुण्यं व्व । संदो ॥ अर्थ:-संस्कृत शब्द उम्र, इष्टा और संदष्ट के अतिरिक्त यदि किसी अन्य संस्कृत शब्द में संयुक्त व्यञ्जन 'ष्ट' रहा हुआ हो तो उस संयुक्त व्यञ्जन ' के स्थान पर 'ठ' की प्राप्ति होती है। जैसे:--लष्टि: = लट्ठी । मुष्टि:- मुट्ठी दृष्टि: -- दिट्ठी | सृष्टि-सिट्ठी । पृष्ट: पुट्ठो | कष्टम् = कटुं । मुराष्ट्रा:- सुरट्ठा | इष्टः= इट्ठो और श्रनिष्टम् = आणिट्ठे | प्रश्नः - 'उष्ट्र, इटा और संदष्ट' में संयुक्त जञ्जन 'ष्ट' होने पर भी सूत्र संख्या २-३४ के अनुसार '' के स्थान पर प्राप्तव्य 'ठ' का निषेध क्यों किया गया है ! उत्तरः——क्योंकि ‘उष्ट्र', 'इष्टा' और 'मंत्र' के प्राकृत रूप प्राकृत साहित्य में अन्य स्वरूप वाले पाये जाते हैं; एवं उनके इन स्वरूपों की सिद्धि अन्य सूत्रों से होती है; 'ठ' की प्राप्ति का इन रूपों के लिये निषेध किया गया है। जैसे:- उ aria | और संदष्टः संदही ॥ लठ्ठा रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-२४० में की गई है। अतः सूत्र संख्या २-३४ से प्राप्तव्य उट्टी । इष्टा- चूर्णम् इव इट्टा - ''
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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