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________________ ३१०] * प्राकृत व्याकरण करते संस्कृत अकर्मक क्रिया पद का रूप है। इसका प्राकृत रूप वझर होता है । इसमें सूत्रसंख्या २-२६ से संयुक्त ध्यञ्जन 'भ्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'झ' को द्वित्व क झ' की प्राप्ति; ६.६० से प्राप्त पूर्व 'क' को 'ज' की प्राप्ति और ३-५३६. से यतमान काल के प्रथम पुरुष के एक पचन में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में ' प्रन्यय की प्राप्ति होकर वार रूब सिद्ध हो जाता है। ध्यानम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप माणं होता है । इसमें सुत्र-संख्या २-२६ से संयुका व्यञ्जन 'भ्य' के स्थान पर 'म' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' का 'ण ; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के। क वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर झाणं रूप सिद्ध हो जाता है। उषज्झाओ रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१७३ में की गई है। स्वाध्यायः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सज्माश्रो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से से अथवा २.से 'व' का लोप; १-८४ से प्रथम दीर्घ स्वर 'या' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति, २-२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'न्य' के स्थान पर 'झ' को प्राप्ति; ८ से प्राप्त 'झ' को द्वित्व 'झम' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'झ' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'य' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' पत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सज्झाओ रूप सिद्ध हो जाता है। • साध्यम् संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप सम्म होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से प्रथम दीर्घ स्वर 'श्रा' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति २.२६ से संयुक्त व्यञ्जन 'भ्य' के स्थान पर 'झ' को प्राप्ति *म से प्राप्त 'म' को द्वित्व 'झम' की प्राप्ति; २-६० से प्राप्त पूर्व 'झ' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; म.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्ययकी प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर सज्ज्ञ रूप सिद्ध हो जाता है। विध्यः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप विमो होता है। इसमें मूत्र संख्या २-२६ से संयुक्त यजन 'भ्य' के स्थान पर 'झ' की प्राप्ति; १-३० से अनुस्वार को 'म' वर्ण अागे होने से 'अ' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विमो रूप सिद्ध हो जाता है। सधः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सम्झो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-६ से संयुक्त म्यञ्जन 'घ' के स्थान पर 'झ' प्राप्ति; २-5 से प्राप्त 'झ' को द्वित्य झाझ की प्राप्ति; २-० से प्राप्त पूर्व 'झ' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; और ३- से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यम की प्राप्ति होकर सम्झो रूप सिद्ध हो जाता है। . ...
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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