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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित - [३१. सेजा। 'य' के उदाहरणः-भार्या भजजा । सूत्र-संख्या :-१७ से भार्या का भरिया रूप भी होता है। फार्यम्-कज्ज । वर्षम्बज । पर्यायः-पज्जायो । पर्यामम्-पज्जत्तं और मर्यादा मज्जाया ।इत्यादि मधम संस्कृत रूप है। इसका प्रावृत रूप मज्ज होता है । इसमें सूत्र-संख्या ६.४ से संयुक्त व्यजन 'ए' के स्थान पर 'अ' की प्रामि; -1 से प्राप्त 'ज' का हिस्व 'जज'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन मे अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुम्वार होकर मज रूप सिद्ध हो जाता है। अवद्यम संस्कृत रूप है। इसका प्रावृत रूप होता है। इसमें सूत्र-संख्या :-२४ से मंयुक्त व्यम्जन 'घ' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; ६-८६ से प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'जज' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक बच्चन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अवज्ज रूप सिद्ध हो जाता है । खेको रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१४८ में की गई है। युतिः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जुई होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-४ से संयुक्त मजन 'य' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; १-१७७ से 'तू' का लोप और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में इकारान्त स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हरव स्वर 'द' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्रारित होकर जुई रूप सिद्ध हो जाता है। .. योतः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप जोश्रो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २२४ से संयुक्त व्यजन 'ए' के स्थान पर 'ज्' की प्राप्ति; १-१७७ से 'त' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जोभो रूप सिद्ध हो जाता है। . . जय्य संस्कृत विशेषण रूप है । इस का प्राकृत रूप जजो होता है । इम में सूत्र-संख्या -४ से संयुक्त व्यञ्जन 'व्य के स्थान पर. 'ज' को प्राप्तिः २-८६ से प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'ज' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'भो' प्रत्यय की प्राप्ति छोकर जज्जी रूप सिद्ध हो जाता है। संज्जा रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-५७ में की गई है। . भार्या संस्कृत रूप है । इसक प्राकृत रूप मजा होता है। इस में सूत्र-संख्या १-८४ से 'मा' में स्थित दोर्म स्वर 'श' को 'न' की प्राप्ति; २-२४ से संयुक्त ध्य-जन के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति और २-८६ से प्राम 'ज' को द्विन्व 'ज्ञ' की प्राप्ति होकर मजा रूप सिद्ध हो जाता है। ... ... ..
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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