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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ २६६ स्थाणुः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप खाणू होता है। इसमें सूत्र - संख्या २७ से मंयुक्त व्यञ्जन 'स्थ' का 'ख' और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर ध्पन्स्य ह्रस्व स्वर 'ब' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर खागू रूप सिद्ध हो जाता है। स्थाणोः संस्कृत षष्ठयन्त रूप है। इसका प्राकृत रूप बागुल होता है। इसमें सूत्र - संख्या २७७ से 'स' का लोग; ३-२३ सेपछी विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुर्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'इन्' के स्थान पर प्राकृत में 'गो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर थागुणो रूप सिद्ध हो जाता है । रेखा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप रहा होता है । उसमें सूत्र संख्या १-१८० से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर बेहा रूप सिद्ध हो जाता है ।। २७ ।। स्तम्भे स्तो वा ।। २-८ ॥ स्तम्भ शब्दे स्तस्य खो वा भवति || खम्भो || थम्भो । काष्ठादिमत्रः ॥ अर्थ:-' स्तम्भ' शब्द में स्थित 'स्त' का विकल्प से 'ख' होता है । जैसे:- स्तम्भः सम्भो अथवा श्रम्भ || स्तम्भ अर्थात् लकड़ी आदि का निर्मित पदार्थ विशेष | स्तम्भः संस्कृत रूप हैं । इसके प्राकृत रूप खम्भों और थम्भ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या २-८ से 'स्त' का विकल्प से 'ख' और द्वितीय रूप में सूत्र-संख्या २-१ से 'स्त' का 'थ' तथा ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'प्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से खम्भा और भम्भो दोनों रूपों की सिद्धि हो जाती हैं । स्पन्दामा थम्भिज्ज ठम्भिज्जइ ॥ थ - ठाव स्पन्दे ॥ २६ ॥ स्वम्भे स्तस्य थठी भवतः ॥ श्रम्भो । ठम्भो ॥ स्तम्भ्पते ! अर्थ:-' स्पन्दाभाव" अर्थात् हलन चलन क्रिया से रहित बड़ी भूत अवस्था की स्थिति में "स्तम्भ" शब्द प्रयुक्त हुआ हो तो उस "स्तम्भ" शब्द में स्थित 'स्व' का 'थ' भी होता है और "ठ" भी होता है, यो स्तम्भ के प्राकृत रूपान्तर में दो रूप होते हैं। जैसे:-स्तम्भः थम्भ अथवा उम्भो । स्तम्भयते= ( उससे स्तम्भ के समान स्थिर हुआ जाता है =यम्भिज्जड अथवा ठम्भिज्ज ॥ थम्भोरूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ९०८ में की गई हैं। स्तम्भः – संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप भी होता है। इसमें सूत्र संख्या २.६ से विकल्प से "ह" का "ठ" और ३-२ प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर "ओ" प्रत्यय की प्राप्ति होकर उम्भी रूप सिद्ध हो जाता है । "
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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