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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित - [२७५ शेप रहे हुए. 'द्' मा द्वित्व 'द' और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर इलिदो रूप मिद्ध हो जाता है। ___ दारिद्रयम संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप दालिद होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२५४ से 'पा संयुक्त' 'र' का 'ल'; २-७६ से अथवा २-८० से द्वित्व 'र' का लोप; २-४८ से 'य' का लोप; २-८६ से लोप हुए 'र' तथा ' में से शेष रहे हुए 'द' का द्वित्व 'द'; ३-२५ मे प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुमकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त हुए. 'म' . का अनुस्वार होकर ड्रालि रूप सिद्ध हो जाता है। __हारिद्रः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप हलिदो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से आदि दीध स्वर 'या' के स्थान पर हव स्वर ''काम१.०५४ से अमयुक्त 'र' का 'ल'; २-७६ से अथवा २-८० से द्वितीय संयुक्त 'र' का लोप; २-८६ से लोप हुए 'र' में सं शेष रहे हुए. 'द' को द्वित्व 'द' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हालको रूप सिद्ध हो जाता है । जहलिटलो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-६६ में की गई है। सिडिला रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२१५ में की गई है। मुखरः संस्कृत विशेषण हे । इसका प्राकृत रुप मुहलो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-६८७ से 'ख' का 'ह'; १-२५४ से 'र' का 'ल' और ३-२ मे प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ प्रत्यय की प्राप्त होकर मुहलो रूप सिद्ध हो जाता है। .. घरण: संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप चलणो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२५४ से र का 'ल' और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पलणो रूप सिद्ध हो जाता है। वरुणः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप वलुणो होता है । इममें सूत्र संख्या १-२५४ से 'र' का 'ल' और ३-२ से प्रथमा बिभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चलुणो रूप सिद्ध हो जाता है। __करुणः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप कलुणो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२५४ में 'र' का 'ल' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओं प्रत्यय की प्राप्ति होकर कलुणो रूप सिद्ध हो जाता है। रंगालो रूम की सिद्धि सूत्र संख्या १-४७ में की है। सत्कारः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सझालो होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से 'तू का
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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