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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [२५६ परुषः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप फरूसो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२३२ से 'प' का 'फ'; १.६० से 'प' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकरान्त पुल्जिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय को प्राप्ति होकर फरूसी रूप सिद्ध हो जाता है। परिधः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप फलिहो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-५३२ मे 'प' का 'फ'; १.२५४ से 'र' का 'ल'; १.१८७ से 'घ का 'ह' और ३२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में प्रकारान्त पुल्लिंग में सि प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फलिहो रूप सिद्ध हो जाता है। परिखा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप फलिहा होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२३२ से 'प' का 'फ'; १.२५४ से 'र' का 'ल' और १-१८७ से 'ख' का 'ह' होकर फलिहा रूप सिद्ध हो जाता है ।। पनसः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप फणसो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२३२ से 'प' का 'फ'; १-२२८ से 'न' का 'ण' ओर ३-२ से प्रथना विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फणसो रूप सिद्ध हो जाता है। पारिभवः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप फालिहदो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १.२३२ से "प" का "फ"; १-२५४ से "र" का "ल"; १-१८७ से "म" का "ह"; २.७८ से द्वितीय "र" का लोप; २-८८ से "द" का द्वित्व "६" और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में "सि" प्रत्यय के स्थान पर "ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फालिहदो रूप सिद्ध हो जाता है । ॥ १.२३२ ।। प्रभूते कः ॥ १-२३३ ॥ प्रभूते पस्य वो भवति ।। बहुत्त' अर्थः प्रभूत विशेषण में स्थित 'प' का 'व' होता है। जैसेः-प्रभूतम् = बहुत्त' ।। प्रभत्तम् संस्कृत विशेषरण है । इसका प्राकृत रूप बहुत्त होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२३३ से 'प' का 'व'; २-E से 'र' का लोप; १-१८७ से 'भ' का ह'; १-८४ से दीर्घ स्वर '' को हस्व स्वर 'उ'; ५-८६ से 'त' का द्वित्व 'त्त'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुमक लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर बहुतं रूप सिद्ध हो जाता है। ॥१-२३३।। नीपापीडे मो वा ॥१-२३४॥ अनयोः पस्य मो वा भवति ॥ नीमो नीवो ।। श्रामेलो आवेडो ।। अर्थः-जीप और श्रापीड शब्दों में स्थित 'प' का विकल्प से 'म' होता है । तदनुसार एक रूप
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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