SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [२४६ अर्थः-दंश और दह धातुओं में स्थित 'द' का प्राकृत रूपान्तर में 'ड' हो जाता है ।जैमे:दशति = डसइ ।। दहति - डहइ ।। दशात मस्कृत सकर्मक क्रिया का रूप है। इसका प्राकृत रूप इसह होता है। इसमें सूत्र संख्या १.२१८ से द' का 'ड'; १.०६० से 'श' का 'स' और ३-१३६ से वतमान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत में प्रत्यय 'ति' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर ढसह रूप सिद्ध हो जाता है। दहात मंस्कृत मकर्मक क्रिया का रूप है। इसका प्राकृत रूप डहइ होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२१८ से 'द' का 'ड और ३-१३६ से वर्तमान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर डहइ रूप सिद्ध हो जाता है । ।। १.२१८ ।। संस्था-गद्गदरः ..२१६ ॥ संख्यावाचिनि गद्गद् शब्दे च दस्य गे भवति । एआरह । बारह ।। नेरह । गग्गरं । अनादेरित्येव । ते दस ॥ असंयुक्तस्येत्येव ॥ चउद्दह ।। अर्थः-संख्या वाचक शब्दों में और गद्गद् शटद में रहें हुए 'द' का 'र' होता है। जैसे:-एकादश प्रारह ।। द्वादश-बारह ।। त्रयोदश-बेरह ।। गद्गदम-गग्गरं ।। 'सूत्र संख्या १-१७६ का विधान-क्षेत्र यह सूत्र भी है; ननुमार संख्या वाचक शब्दों में स्थित 'द' यदि अनादि रूप से ही हो; अथात् संख्या-वाचक शन्नों में आदि रूप से स्थित नहीं हो; तभी उम 'द' का होता है। यदि मुख्या-वाचक शब्दों में 'द' श्रादे अक्षर रूप से स्थित है; नी उम 'द' का 'र' नहीं होता है। ऐमा बनलाने के लिये ही इस सूत्र की वृत्ति में अनादेः रूप शब्द का उल्लेख करना पड़ा है। जैसे:-तव दश ने दस ॥ सूत्र-मस्त्या १-१७६ के विधान अन्तर्गत होने से यह विशेषता और है कि संख्या-वाचक शब्दों में स्थित 'द' का 'र' उसी अवस्था में होता है जबकि 'द' अमंयुक्त हो; हलन्त नहीं हो; स्वर माहित हो इसीलिये सूत्र की युत्ति में 'असंयुक्त ऐसा विधान किया गया है। संयुक्त' होने की दशा में 'द' का 'र' नहीं होगा । जैसे:-नतुर्दश-चउदह ।। इत्यादि ।। एकादश संख्या वाचक संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप पारह होता है। इसमें सूत्र संख्या -१७७ से 'क' का लोप; १-१६ से 'द' का 'र'; और १-२६२ में 'श' का 'ह' होकर एआरह रूप सिद्ध हो जाता है। बादश संख्या वाचक संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप बारह होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से 'द्' को लोप; २-१७४ से वर्ण-व्यत्यय के सिद्धान्तानुसार 'व' के स्थान पर 'ब' का आदेश
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy