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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [२४७ अर्थ:-इशान, दृष्ट, नग्ध, दोला, दगड, दर,दाह, दम्भ, दर्भ, कदन श्री-दोहद शब्दों में स्थित 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड' होता है । जैसे:-दशनम्-डमणं अथवा दसणं ।। इष्टः इदठी अथवा इट्ठो ।। दग्धः डड्डो अथवा दडढो । दोलान्डोला अथवा दोला । दण्डः डण्डी अथवा दण्डा । दर:-डरो अथवा दरो ।। दाहः लाहो अथवा दाहो ।। दम्भ: इम्भो अथवा दम्भी ।। दर्भ:= डटभो अथवा दबभी ॥ कदनम् - कडणं अथवा कयणं ।। दोहदः-डोहलो अथवा दाहलो ।। 'दर' शब्द में स्थित 'द' का वैकल्पिक रूप में प्राप्त होने वाला 'दु' उप्सी अवस्था में होता है। जबकि दर शब्द का अर्थ 'उर' अर्थात् भय-वाचक हो; अन्यथा 'दर' के 'द' का उ' नहीं होता है । जैसः-दर-दलितम् = दर-दलिनं ॥ तदनुसार 'दर' शब्द का अर्थ भय नहीं होकर थोड़ा सा' अथवा 'सूक्ष्म' अर्थ होने पर 'दर' शब्द में स्थित 'द का प्राकृत रूप में 'द' ही रहा है । नाक 'द' का 'ड' हुआ है । ऐसी विशेपत्ता 'इर' शब्द के सम्बन्ध में जानना ।। दशनम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप इमणं और दसरणं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२१५ से 'द का वैकल्पिक रूप से 'ड'; १-०६० से 'श' का 'स'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कम से डसणं और इसणं दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। दष्टः संस्कृत विशेषण रूप है । इसके प्राकृत रूप डट्टो और दट्ठो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२५७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; २-३४ से '' का 'ठ'; २-८६ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ड'; २-६० से प्राप्त पूर्व ' का 'द'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डट्ठो और दट्ठो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं । ग्धः संस्कृत विशेषण है । इसके प्राकृत रूप डट्टो और दड्डो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १.२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; २-४० से 'ग्ध' का 'ढ'; २.८६ से प्राप्त 'ढ' का द्वित्व व २.६० से प्राप्त पूर्व 'ढ' का 'ड' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्जिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से डड्डी और दहहो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। दोला संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप डोला और दोला होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ख' होकर कम से डोला और दोला दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। इंडः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप डण्डो और दण्डो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से 'ड'; १.३० से अनुस्वार का श्रागे 'इ' होने से हलन्त 'ण'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर श्राम से डण्डो और दण्डो दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। दरः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप डरो और दो होते हैं इनमें सूत्र संख्या १.२१७ से 'द' का वैकल्पिक रूप से '' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में सि' प्रत्यय के
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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