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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [२४३ ज्ञातवाहमी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप सालाहणी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२६० में 'श' का 'स'; १-२११ ले पर' के स्थान पर काम श: १-१४४४ में 'व' का लोप; ५-५ से लोप हुए 'व' में से शेप रहे हुए 'आ को पूर्व वर्ण 'ल' के साथ संधि होकर ‘ला की प्राप्ति और १-२२८ से 'न' को 'ण की प्राप्ति होकर सालाणी रूप सिद्ध हो जाना है। भाषा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप भामर होता है । ममें मत्र मंग्या :.:६० से 'प' का 'म होकर भासा रूप सिद्ध हो जाता है । ॥ १-२१५ ॥ पलिते वा ॥ १-२१२॥ पलिते तस्य लो वा भवति ॥ पलिलं । पलिभं ॥ अर्थ:... पलित शब्द में स्थित 'त' का विकल्प से 'ल' होता है। जैसे:-पलितम् पलिलं अथवा पलियं ।। पालतम संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप पलिलं और पलिअं होते हैं। इनमें सत्र संख्या १-२१२ से प्रथम रूप में 'न' के स्थान पर बिकल्प से 'ल' आदेश की प्राप्ति; और द्वितीय रूप में वैकल्पिक पक्ष होने से १-१७७ से 'त्' का लोप, ३-२५ से दोनें रूपों में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'सि प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और ५-२३ से प्राप्त 'म्' कर अनुस्वार होकर कम से पलिल और पलिभं दोनों रूप सिद्ध हो जाते हैं। ॥१-२१२ ॥ . पीते वो ले वा ॥ १-२१३ ।। पीते तस्य वो वा भवति स्वार्थलकारे परे ॥ पीवलं ।। पीअलं ॥ ल इति किम् । पी । अर्थ:-'पीत' शब्द में यदि 'स्वार्थ-बोधक' अर्थात् 'वाला' अर्थ बतलाने वाला 'ल' प्रत्यय जुड़ा हुश्रा होतो 'पीत' शब्द में रहे हुग. 'त' वर्ण के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'च' वर्ण का प्रादेश हुअा करता है। जैसे:-पीतलम् पीवलं अथवा पीअल-पीले रंग याला ।। मश्नः-मूल-सूत्र में 'ल' वर्ण का उल्लेख क्यों किया गया है ? उत्तरः- 'ल' वर्ण संस्कृत-व्याकरण में 'स्वार्थ-बोधक' अवस्था में शब्दों में जोड़ा जाता है। तदनुसार यदि 'पीत' शब्द में स्यार्थ-बोधक 'ल' प्रत्यय जुड़ा हुआ हो; तभी 'पीत' में स्थित 'त' के स्थान पर 'ब' वर्ण का वैकल्पिक रूप से प्रादेश होता है; अन्यथा नहीं। इसी तात्पर्य को समझाने के लिये मूल-सूत्र में 'ल' वर्ण का उल्लेख किया गया है। स्वार्थ-बोधक 'ल' प्रत्यय के अभाव में पीत शब्द में स्थित 'त' के स्थान पर 'व' वर्षे का आदेश नहीं होता है । जैसे-पीतम् पी ।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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