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________________ २२६] * प्राकृत व्याकरण चपेटाः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रुप चविला और चविडा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र- संख्या १-२३१ से 'प' का 'च';.१-१४६ स 'ए' को 'इ' की प्राप्ति१-२६८ से 'ट' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ल' का आदेश होकर चचिला रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप पिडा की सिसि सूत्र- संख्या १-१४६ में की गई है। पाटयति संस्कृत सकर्मक प्रेरणार्थक क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत रूप फालेइ और फाइ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सुत्र संख्या १-२३२ मे 'ए' का 'फ'; १-१८ से बैकल्पिक रूप से 'ट' के स्थान पर 'ल' का आदेश; ३-१४६ से प्रेरणार्थक में संस्कृत प्रत्यय 'णि के स्थान पर अर्थात् 'गिण' स्थानीय 'अय' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति से 'ल + ए ='ले'; और ३.१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप फाले सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप फाडेइ में पत्र संख्या १-१६५ से वैकल्पिक पक्ष होने से 'ट्' के स्थान पर '' की प्राप्ति और शेष सिवि प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप फाडंह भो सिद्ध हो जाता है । ॥१-६६८!! ठो ढः ॥ १-१६६ ॥ स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेष्ठस्य ढो भवति ॥ महो । सढो । कमहो । कुढारो । पसइ ।। स्वरादित्येव । बेठो । संयुक्तस्येत्येव । चिट्ठइ ।। अनादेरित्येव । हिअए ठाइ ॥ अर्थः यदि किसी :शब्द में 'ट' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ; असंयुक्त और श्रनादि रूप हो; अर्थात् हलन्त भी न हो तथा श्रादि में भी स्थित न हो; तो उस 'ठ' के स्थान पर 'ढ' की प्राप्ति होती है। जैसे:-मठः-मटो; शठः सद्घो; कमटः कमढो; कुठारः-कुढारो और पठति पढइ ।। प्रश्न:-'स्वर से परे रहता हुश्रा हो' ऐसा क्यों कहा गया है? उत्तर:---क्योंकि यदि किसी शब्द में 'ठ' वर्ण स्वर से परे रहता हुआ नहीं होगा तो उस 'ठ' का 'उ' नहीं होगा । जैसे:-चैकुण्ठः वेठो ।। प्रश्नः-'संयुक्त याने हलन्त नहीं होना चाहिये; याने स्वर से युक्त होना चोहिये' ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तर:-क्योंकि यदि किसी शब्द में 'ड' वर्ण संयुक्त होगा-हलन्त होगा-स्वर से रहित होगा; तो उस 8' का 'ढ' नहीं होगा । जैसे:-तिष्ठति-चिट्ठइ॥ प्रश्नः-शब्द के आदि स्थान पर स्थित नहीं हो; ऐसा क्यों कहो गया है ?
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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