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________________ २२२ ] छाग: संस्कृत रूप है | इसका प्राकृत रूप छालो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-९६१ से 'ग' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर छालो रूप सिद्ध हो जाता है। * प्राकृत व्याकरण * छागीः संस्कृत रूप है | इसका प्राकृत रूप वाली होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१६१ 'ग' के स्थान पर 'ल' की प्राप्ति होकर छाली रूप सिद्ध हो जाता है ।।। १-१६१ ॥ ऊत्वे दुभंग-सुभगे वः ॥ १-१६२ ॥ अनयोरुत्ये गस्य वो भवति । दूहवो । सुहवो || उत्व इति किम् । दुहश्र ॥ सुश्री ॥ अर्थः- दुभंग और सुभग शब्दों में स्थित 'ग' के स्थान पर 'च' की प्राप्ति होती है । जैसे:-दुर्भगःदूहवो । सुभगः=सुहवो ॥ किन्तु इसमें शर्त यह है कि 'ग' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति होने की हालत में 'दुभंग' और 'सुभग' शब्दों में स्थित ह्रस्व 'उ' को दीर्घ 'क' की प्राप्ति भी होती है। यदि ह्रस्व 'उ' के स्थान पर दीर्घ 'ऊ' नहीं किया जायगा हो कि 'ग' को 'क' की नहीं सोकर 'ग' का लोप हो जायगा । इसीलिये सत्र में और वृत्ति में 'ऊत्य' की शर्त का विधान किया गया है। अन्यथा 'ग' का लोप होने पर 'दुभंग' का 'दुहओ' होता है और 'सुभगः' का 'सुहो' होता है ॥ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११५ में की गई है । सुहवो रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११ में की गई है। दुहओ रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११५ में की गई है। सुह रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११३ में की गई है । ।। १-१६२ ।। खचित-पिशाचयोवः स - लौ वा ॥ १-१६३ ॥ श्रनयोश्चस्य यथासंख्यं स ल इत्यादेशो वा भवतः ॥ खसि खड़ओो । पिसल्लो पिसायो । अर्थः- खचित्त शब्द में स्थित 'च' का विकल्प से 'म' होता है । और पिशाच शब्द में स्थित 'च' का विकल्प से 'ल्ल' होता है। जैसे:- खचितः खमियो अथवा खइओ और पिशाचः = पिसल्लो अथवा पिसाओ । afe: संस्कृत विशेषण रूप हैं। इसके प्राकृत रूप खसिओ और खच्यो होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-१६३ से विकल्प रूप से 'च' के स्थान पर 'स' आदेश की प्राप्ति और द्वितीय रूप में वैकल्पिक पक्ष होने से सूत्र संख्या १-१७७ से 'च्' का लोप; दोनों ही रूपों में सूत्र संख्या १-१७७ से 'तू' का लोप और १-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारास्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से खसिओ तथा खड़भी रूपों को सिद्धि हो जाती है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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