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________________ * प्राकृत व्याकरण * पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप मुन्नदो सिद्ध हो जाता है । ___ द्वितीय रूप सुहओ में सूत्र संख्या १-१८से '' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; १-१७७ से 'द्' का लोप; और ३.२ प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप सुहओ सिद्ध हो जाता है। 'स' संस्कृत सर्व नाम रूप है । इसके प्राकृत रूप सो और स होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ३-३ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर वैकल्पिक रूप से 'सो और 'स' रूप सिद्ध होते हैं। उण अव्यय की मिद्धि सूत्र संख्या १-६५ में की गई है। सो सर्व नाम की सिद्धि सूत्र संख्या १-६७ में की गई है। च संस्कृत संबंध वाचक अव्यय है। इसका प्राकृत रूप 'श्र' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'च्' का लोप होकर 'अ' रूप सिन हो जाता है। चिन संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप इन्धं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'घ' का लोप; २-५० से 'ह' के स्थान पर 'न्ध' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वयम में नमक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' को अनुस्वार होकर इन्ध रूप सिद्ध हो जाता है। पिशाची संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप पिसाजी होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स्'; १-१७७ की वृत्ति से 'च' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति होकर पिसाजी रूप सिद्ध हों जाता है। एकत्वम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रुप पग होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ की वृत्ति से अथवा ४-३६६ से 'क' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति; २-७६ से '' का लोप; २-८८ से शेष 'त' को द्वित्व 'त' की प्राप्ति; ३-२५. से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर एगर्त रूप सिद्ध हो जाता है।। एकः संस्कृत सर्व नाम रूप है । इसका प्राकृत रूप एगो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१४ को धृत्ति से श्रथवा ४-३६६ से 'क' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर एगो रूप सिद्ध हो जाता है। अमुक संस्कृत सर्व नाम है । इसका प्राकृत रूप अमगो होता है। इसमें सत्र संख्या १-१७७ की वृत्ति से अथवा ४-३६६ से 'क' के स्थान पर 'ग' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अमुगो रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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