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________________ १८२] * प्राकृत व्याकरण इस अव्यय में सम्बोधन कप पान्य प्रयोग की स्थिति होने से प्राकृत भाषा में ये स्वर का प्रयोग किया गया है ।। आर्य संस्कृत अव्यय है। इसके प्राकृत रूप में और अइ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्रसंख्या १-१६६ से 'अयि' के स्थान पर 'ऐ' का आदेश; हो जाता है। द्वित्तीय रूप में सूत्र-संख्या १-१७७ से 'य' का लोप होने से अइ रूप सिद्ध हो जाता है। बिभेमि संस्कृत किया पद है। इसका प्राकत रूप बीहेमि होता है। इसमें सूत्रसंख्या ४-५३ से 'भी' संस्कृत धातु के स्थान पर 'बीह' आदेश की प्राप्ति; ४-२३६ से व्यञ्जनान्त धातु में पुरुष-बोधक प्रत्ययों की प्राप्ति के पूर्व में 'अ' की प्राप्तिः ३-१५८ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रुप से 'ए' का श्रादेश; और ३-१४१ से वर्तमानकाल में मृतीय-पुरुष के अथवा पत्तम पुरुष के एक वचन में 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर वीहोम रूप सिद्ध हो जाता है। उन्मत्तिके संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप उम्मन्सिप होता है। इसमें सूत्र-संख्या २.७७ से 'उत्त-मत्तिके' संस्कृत मूल रूप होने से 'त' का लोप; २-८८ से 'म' का द्वित्व' 'मम'; १-१७७ से 'क' का लोप; होकर उम्मत्तिए रूप सिद्ध हो जाता है ॥ १-१६६ ॥ प्रोत्पूतर-बदर-नवमालिका-नवफलिका-पूगफले ॥ १-१७० ॥ पूतरादिषु आदेः स्वरस्य परेण सस्वर व्यञ्जनेन सह ओद् भवति ॥ पोरो। बोरं । घोरी । नोमालिया ! नोहलिया : पोप्फल। पोप्फली ।। अर्थ:-पूतर; यदर; नवमालिका; नवफलिका और पूगफल इत्यादि शब्दों में रहे हुए, आदि स्वर के साथ परवर्ती स्वर सहित व्यब्जन के स्थान पर 'श्री' आदेश की प्राप्ति होती है । जैसेः-पूतरः = पोरो; बदरम् = बोरं; बदरी = बोरी; नषमालिका = नोमालिया; नवफलिका = नोहलिया; पूगफलम् = पोप्फलं और पूगफली =पोष्फली। पतरः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप पोरो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७० से आदि स्वर 'उ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'त' के स्थान पर 'ओ' आदेश की प्राप्ति अर्थात् 'पूत' के स्थान पर 'पो' को प्राप्ति; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पोरो रूप सिद्ध हो जाता है। यदरम् संस्कृत रुप है। इसका प्राकृत रूप बोरं होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१०० से आदि स्वर 'अ' सहित परवर्ती स्वर सहित 'द' के स्थान पर 'यो' श्रादेश की प्राप्ति; अर्थात् 'बद' के स्थान पर 'बो' की प्राप्ति;३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वधन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय को प्रारित और १-२३ प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर घोर रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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