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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [१४७ मुणालं । उज्जू । जामाउओ। माउो । माउआ । भाऊो । पिउनो । पुहुवी ॥ ऋतु । परामृष्ट । स्पृष्ट । प्रवृष्ट । पृथिवी । प्रवृत्ति । प्राप् । प्राकृत । भृति । प्रभृति । प्राभृत । परभृत । निभृत । निवृत्त । विवृत । संत | वृत्तान्त नि त । निति । वृन्द । वृन्दावन । वृद्ध । वृद्धि | ऋषभ । मृणाल । ऋजु । जामाक । मातृक । मातृका । भ्राहका । पितृक । पृथ्वी | इत्यादि ।। अर्थ:-ऋतु इत्यादि शब्दों में रही हुई श्रादि 'ऋ' का 'ड' होता है । जैसे-ऋतु:= उक। परामृधः = परामुट्ठो । सृष्टः = पुट्ठो। प्रवृष्टः पट्ठो । पृथिवी-पुहई । प्रवृत्तिः = पउली। प्रावृष्= (प्राद)=पाउसो | प्रावृतः = पाजो । मानः भुई। प्रभृति = पहुडि । प्राभृतम् = पाहुब । परभृतः = परहुओ ! निभृतम् =निहुध । निवृत्तम् निउग्रं । विवृतम् = विउअं । संवृतम् =संवुन । वृत्तान्तः = चुत्तन्तो । निर्वतम-निव्युनं । निर्वृत्तिः =निव्वुई । वृन्दम्-बुन्दं । वृन्दावनो-वुन्दावणो ! वृद्धः- बुड्ढो । वृद्धिा वुड्डी । ऋषभः = उसहो । मृणालम्-मुपालं ! ऋजुः= उज्जू । जामाकः =जामाउओ | गाना - माउ माका --लाममा सुकाउओ। पितृकः=पिउओ । पृथ्वी-धुहुवी। इत्यादि इन ऋतु आदि शब्दों में आदि 'ऋ' का 'उ' होता है; ऐसा जानना। मतुः संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप उऊ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१३१ से '' का ज'; १-१७७ से 'त्' का लोप, और ३.१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में स्त्री लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' का दीर्घ 'होकर उऊ रूप सिद्ध हो जाता है। .. परामृष्टः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप परामट्टो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१३१ से "' का ''; २-३४ से 'ट' का 'ठ', 25 से प्राप्त 'ठ का द्वित्व 'छ': २-६० से प्राप्त'पूर्व ' का ट्; और ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर परामुट्ठो रूप सिद्ध हो जाता है। स्पृष्टः संस्कृत विशेषरण है। इसका प्राकृत रूप पुट्ठो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-*-से आदि 'म्' का लोप; १-१३१. से 'ऋ' का 'उ'; २.३४ से 'फ्ट' का 'ट; २-4 से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठ्ठ'; २-० से प्राप्नं पूर्व 'ठ' का 'द'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एफ बचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पुदठो रूप सिद्ध हो जाता है। प्रकृष्ट : संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप पउट्ठो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-5 से र का लोप; १.१७७ से '' का लोप; १-१३१ सं 'ऋ' का 'उ'; २-३४ से 'ट' का 'ठ', २-८ से प्राप्त 'का द्वित्व 'छ' २-६० से प्राप्त पूर्व छ' का 'द'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पउछो रूप सिद्ध हो जाता है !
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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