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________________ સરસ્વતિમ્બ્રેન મણીલાલ શા राम [१४५ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित ***** सूत्र में 'अनुचर पर ' ऐसा क्यों लिखा गया है ? उत्तर- यदि 'पृष्ठ' शब्द आदि में नहीं होकर किसी अन्य शब्द के साथ में पीछे जुड़ा हुआ होगा तो पृष्ठ शब्द में रही हुई 'ऋ' की 'इ' नहीं होगी। जैसेमही पृष्ठम महिवष्टुं | यहाँ पर 'ऋ' की 'इ' नहीं होकर 'अ' हुआ है ॥ पिठ्ठी शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १-३५ में की गई है। पृष्ठिः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप पट्टी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२६ से '' का 'अ'; २-३४ से 'ष्ठ'; का 'ह'२-८६ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठ'; २-६० से प्राप्त पूर्व 'ठू' का 'द'; और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'सिंप्रत्यय के स्थान पर अन्य हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई' होकर पट्टी रूप सिद्ध हो जाता है । पुष्ठ-परिस्थापित संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप पिट्टि परिद्वविधं होता है। इसमें सूत्र संख्या १९२८ से 'ऋ' की 'इ'; २-३४ से 'छ' का 'ठ' १८ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठूंठ' २०६० प्राप्त पूर्व'' का 'द'; १-४६ से प्राप्त 'द' में रहे हुए 'थ' की 'इ'; ४-१६ स े 'स्था' धातु के स्थान पर 'ठा' का आदेश; १ ६७ से 'ठा' में रहे हुए 'था' का 'अ' से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठूल २ - ६० से प्राप्त पूर्व 'व्' का 'टू'; १-२३१ से 'पू' का 'ब'; १-१७७ से 'न' का लोप; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर पिट्टि परिहवि रूप सिद्ध हो जाता है । महापृष्ठम, संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप महिव होता है। इसमें सूत्र संख्या १-४ से 'ई' की 'इ'; १-१२६ से 'ऋ' का 'अ' १-२३१ से 'पू' का 'व्'; २-३४ से 'ष्ठ' का 'उ'; २-८६ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठ'; २-६.० प्राप्त पूर्व '' का 'टू'; ३- २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर महिषदं रूप सिद्ध हो जाता है । ।१२६॥ मसृण- मृगाङ्क-मृत्यु-भृंग धृष्टे वा ॥ १-१३० ॥ एषु ऋत इद् वा भवति ।। मसिणं मसणं । मिश्रङ्को मयको । मिच्चू । मच्चू सिंङ्ग संग | धिडो ॥ धड़ो । अर्थ:--मसूण, मृगाङ्ग, मृत्यु, वङ्ग, और धृष्टः इन शब्दों में रही हुई 'ऋ' की विकल्प से '' होती है। तदनुसार प्रथम रूप में 'ऋ' की 'इ' और द्वितीय वैकल्पिक रूप में 'ऋ' का 'न' होता है। जैसे-मभृणम् =मसिणं और मसणं । मृगाङ्कः = मिङ्को और मयको || मृत्युः = मिथू और मधू / || शृङ्गम् =सिङ्ग ं और सङ्ग' ।। धृष्टः धिट्ठो और थट्टो ॥
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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