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________________ *प्रियोदप हिन्दी व्याख्या सहित * [१४३ किषिणो शब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १४ में की गई है।. . कृपाणम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप किवाणं होता है। इसमें-सूत्र-संख्या-१-१२८ से 'ऋ' की 'इ'; १-२३१ से प्' का 'व्' ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म का अनुस्वार होकर कियाणं रूप सिद्ध हो जाता है। . . . . . . . . . पाश्चिकः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप विचुलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-१८ से '' की , २-१६ से स्वर सहित 'श्चि' के स्थान पर 'कचु' का आदेश; -१४४ से क का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विखुओ रूप सिद्ध हो जाता है। तम् संस्कृत पाई। इसका प्राकृत पवित्र होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८ से 'श' की ६,३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की 'प्राप्ति, और १-२३ से प्राप्त म्' का अनुस्वार होकर वित्तं रुप सिद्ध हो जाता है। त्तिः संस्कृत रुप है। इसका प्राकृत रूप वित्ती होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२८ से 'ऋ' की . 'इ'; और ३-१६ से प्रथमा विभक्त्ति के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई' होकर वित्ती रुप सिद्ध हो जाता है। . हृतम् संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रुप हिंअं होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१८ से 'ऋ' । की 'इ', १-१७७ से 'तु' का लोप; ३-५ से प्रथमा विभक्त्ति के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की स्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर हिमं रुप सिद्ध हो जाता है। व्याहत्तम संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप वाहित होता है। इसमें सूत्र संख्या २-- मे 'य' का लोप, १-१८ से न' की 'इ'; :-८८ से '' का द्वित्व 'त; ३.२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् की प्राप्ति; ६-१८३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर चाहते रूप सिद्ध हो जाता है। .. . हितः संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप बिहिनो होता है। इसमें स्त्र संख्या १-१२८ से 'ऋ' की 'द'; १-१७७ से 'तू' का लोप; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक पचन में पुल्लिग्ग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर विहिजो रूप सिद्ध हो जाता है। . .. सी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूपविसी होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१९८ से '' की :इ होकर पिसी ए सिद्ध हो जाता है। .. .. . . .
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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