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________________ १३४] * प्राकृत व्याकरण * उक्यूहम् संस्कृत विशेषण है । इसके प्राकृत रूप बच्ची और उब्यूढं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७७ से 'इ' का लोप; २-७८ से 'य्' का लोप; २-८६ से 'व्' का द्वित्व 'बूबू'; १-१२० से दीर्घ 'ऊ' की विकल्प से दीर्घ 'ई' ; ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'स्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से उढं और उब्यूढं रूप सिद्ध हो जाते हैं । उम्र- हनुमत्कण्डूय - वातूले ॥ १-१२१ ॥ ऊत उत्वं भवति ॥ मया । हणुमन्तो । करदुई | वाउलो || अर्थः- भ्रू, हनुमत, कण्डूयति, और वातूल इन शब्दों में रहे हुए दीर्घ 'ऊ' का ह्रस्व 'ब' होता है । जैसे— भूमया = भुमया । हनूमान = हणुमन्तो । कण्डूयति = कण्डुष्यइ । वातूलः - बाउलो । I भ्रमया संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप भुमया होता है । इसमें सूत्र संख्या २७६ से 'र्' का लीप: १-१२१ से दीर्घ 'ऊ' का ह्रस्व 'उ' होकर भुमया रूप सिद्ध हो जाता है । हनुमान संस्कृत गुरुनु है । इसका प्राकृत रूप हनुमन्तो होता है। इसका मूल शब्द हनुमत् है । इसमें सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' का 'ण'; १-१२१ से दीर्घ 'ऊ' का ह्रस्व 'उ'; २- १५६ से 'स्वार्थ 'में' मत' प्रत्वय के स्थान पर 'मन्त' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'यो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हणुमन्तो रूप सिद्ध हो जाता है। संस्कृतकर्मक क्रिया है। इसका प्राकृत रूप कण्डुधार होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२१ से दीर्घ 'ऊ' का ह्रस्व 'उ' १-१७७ से 'य्' का लोप; और ३-१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति होकर कण्डअह रूप सिद्ध हो जाता है । वातुलः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप वाउलो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१७७५ से 'तू' का लोप; १-५२९ से दीर्घ 'ऊ' का हस्त्र 'उ'; और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बाउलो रूप सिद्ध हो जाना है । ।। १२२ ।। मधूके वा ॥ १-१२२ ॥ मधुक शब्दे ऊत उर्दू या भवति || महुयं महू || अर्थ:- - मधूक शब्द में रहे हुए दीर्घ 'ऊ' का विकल्प से ह्रस्व 'ड' होता है । जैसे-मधूकम=महु और महू । मधूकं संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप महु और महू होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १०१८७ 1 t
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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