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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [११३ फे एक बचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर पाणि रूप सिह मो जाता है । द्वितीय रूप में-१-२ के अधिकार से सूत्र संख्या १-१०१ का निषेध करके दीर्घ 'ई' ज्यों की त्यों ही रह कर पाणी रूप सिद्ध हो जाता है। अलीफा संस्कृत विशेषण है । इसके प्राकृत रूप अलि और अली होते हैं । इसमें सूत्रसंख्या-१-१७७ से 'क' का लोप; १-१०१ से 'दीर्घ ई' का ह्रस्व 'इ'; ३-२५ से प्रयमा के एक वचन में मपु'सक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर अलिंग रूप सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में १-२ के अधिकार से सूत्र-संख्या १-१०१ का निषेध करके दीर्घ 'ई' ज्यों की त्यों ही रह कर अली रूप सिद्ध हो जाता है। जीपति संस्कृत अकर्मक क्रिया है। इसके प्राकृत रुप जिआइ और जीआइ होते हैं। मूल धातु 'जीव' है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२३६ से 'व' में 'श्र' की प्राप्ति; ६-१०१ से दीर्घ 'ई' की तस्व 'इ' १-१७७ सेव' का लोप, ३-१३६ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जिअड़ रूप सिद्ध हो जरता है । द्वितीय रूप में १-२ के अधिकार से सूत्र-संख्या १-१०१ का निषेध करके दीर्घ 'ई' ज्यों की त्यों ही रहकर जीअड़ रूप सिद्ध हो जाता है। जीवतु संस्कृत अकर्मक क्रिया है। इसका प्राकृत रूप 'जिअउ' होता है। इसमें 'जिन' तक सिद्धि ऊपर के अनुसार जानना और ३-१७३ से आज्ञार्थ में प्रथम पुरुष के एक वचन में 'तु' प्रत्यय के स्थान पर 'उ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जिअउ रूप सिद्ध हो जाता है। वीडितम् संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप विलिन होता है। इसमें सूत्र-संख्या-२.. से 'र' का लोप; ५-१०१ से दीर्घ 'ई' की ह्रस्व 'ई'; १-२०२ से 'ड' का 'ब' ६-१७७ से 'त' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एक बचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर बिलिअं रूप सिद्ध हो जाता है। राषः संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप करिसो और करीमो होते हैं। इनमें सूत्र-संन्या१-१०१ से दीर्घ 'ई' की हस्व 'इ'; १-२६० से 'ष' का 'स'; और ३-२ से मथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर करिसो रूप सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में १-२ के अधिकार से सूत्र-संख्या-२-२०१ का निषेध करके दीर्घ ई' ज्यों की त्यों ही रह कर करीसो रूप सिद्ध हो जाता है। शिरीषः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप सिरिसो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-१०१ से दीर्घ 'ई' की ह्रस्व 'इ'; १-२६० से 'श' तथा 'ष' का 'स;' और ३-२ से प्रथमा के एक बचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सिरिसो रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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