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________________ * प्रियदय हिन्दी व्याख्या सहित * [११५ विनम, संस्कृत शब्द हैं। इसका प्राकृत रूप दो बयां होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७० से 'यदि व्' और 'च्' का लोप; १-६४ की वृत्ति से 'इ' का 'श्री'; १५० से शेष 'अ' का 'य' १-२२६ से 'a' का 'ग' ३ २५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की होकर 'दो-वयणं' रूप सिद्ध हो जाता है । इसे निमज्जति संस्कृत अकर्मक क्रियापद है। इसका प्राकृत रूप गुमज्जइ होता है। इसमें सूत्र संख्या वर्तमान-काल में प्रथम पुरुष के १-२२८ से 'न्' का 'ण'; १०६४ से आदि '३' का 'उ और ३- ३६ एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय होकर गुमज्जइ रूप सिद्ध हो जाता है। निमग्नः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप मन्नो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२२६ से नू' का 'ण्'; १-६४ से 'इ' का 'उ'; २७७ से 'ग' का लोपः २८६ से 'न' का द्वित्वन्न' और ३-२ से प्रथमा के एक बचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मन्नो रूप सिद्ध हो जाता है। faraft संस्कृत अकर्मक क्रिया है। इसका प्राकृत रूप निवडइ होता है। इसमें सूत्र संख्या१–२३१ से 'प' का 'ब' ४-२१६ से पत् धातु के 'त' का 'ड', और ३- १३६ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' के स्थान पर 'इ' प्रत्यय होकर निवडइ रूप सिद्ध हो जाता है। प्रवासीतौ ॥ १-६५ ॥ नोरादेरित उत्वं भवति । पावासुश्र । उच्छू अर्थः- प्रवासी और इनु शब्दों में आदि 'इ' का 'उ' होता है। जैसे-प्रवासिकः = पायासुयो । इक्षुः = उच्छू ॥ प्रवासिक : संस्कृत विशेषण शब्द हैं। इसका प्राकृत रूप पावा होता है। इसमें सूत्र संख्या२-७६ से 'र् का लोप १-४४ से 'प' के 'अ' का 'आ'; १-६५ से 'इ' का 'उ'; ७७ से 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'प्रो' प्रत्यय होकर पावासुओ रूप सिद्ध हो जाता है। इक्षुः संस्कृत शब्द है इसका प्राकृत रूप लू होता है । इसमें सूत्र संख्या १-६५ से ६' का 'उ' २-१७ से 'क्ष' का 'छ'; २८६ से प्राप्त 'छ' का द्वित्व 'छ' २०६० से प्राप्त पूर्व 'छ का 'च'; और ३-१६ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य ह्रस्व स्वर 'उ' का दीर्घ स्वर 'ऊ' होकर उच्छू रूप सिद्ध हो जाता है ।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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