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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [१११ तित्तिरिः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप तित्तिरो होता है। इसमें सूत्र संख्या - १ ६० से 'रि' में ही हुई '' का 'अ'; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर तित्ति रूप मिद्ध से जाता है। इतौ तो वाक्यादौ ॥ १-६१॥ वाक्यादिभूते इति शब्दे यस्तस्तत्संबन्धिन इकारस्य अकारो भवति । इअ जम्पि stand | विमसि - कुसुम || वाक्यादाविति किम् । प्रियति । पुरिसो चि ॥ अर्थः- यदि वाक्य के आदि में 'इति' शब्द हो तो; 'ति' में रही हुई 'इ' का 'अ' होता है। जैसे इति कथितावासाने विसाये । इति विकसित - कुसुम राइ विश्रमिश्र-कुसुम-मरी ॥ मूल सूत्र में 'वाक्य के आदि में ऐसा क्यों लिखा गया है ? उत्तर- यदि यह 'इति' श्रव्यय वाक्य की आदि में नहीं होकर वाक्य में अन्य स्थान पर हो तो उन अवस्था में 'ति' की 'इ' का 'अ' नहीं होता है। जैसे- प्रियः इति = पिश्रोति । पुरुषः इति = पुरियोति ॥ 'इ' की सिद्धि सूत्र - संख्या-१-४२ में की गई है। feature संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप जम्पिश्रवसा होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-२ से 'फ' धातु के स्थान पर 'जम्म' का आदेश १-१७७ से 'तू' का लोप; १०२२८ से 'न' का 'ए' ३-११ सप्तमी विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जम्पिआपसा रूप सिद्ध हो जाता है। विकसित-कुसुम शरः संस्कृत शहर है। इनको प्राकृत रूप विश्रमिश्र-कुसुम-सरो होते हैं। इसमें सूत्र संख्या-१-१७७ 'विकसित' के 'क' और 'तू' का लोपः १-२६० से 'श' का 'म'; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' होकर विभासेस-कुसुम-सरो रूप सिद्ध हो जाता है। पयोति और पुरिसोत्ति की सिद्धि सूत्र संख्या १-४२ में की गई है। ईर्जा-सिंह- त्रिंशद्विशतो त्या ॥ १-६२ ॥ जिह्वादिषु इकारस्य निशब्देन सह ईर्भवति ॥ जीहा। सीहो । तीसा । बीसा 1) चहुलाधिकारात् कचिन्न भवति । सिंह-दसो सिंह-राओ । = अर्थ:-- जिल्हा सिंह और त्रिंशत् शब्द में रही हुई 'इ' की 'ई' होती है। तथा विंशति शब्द में 'ति' के साथ याने 'ति' का लोप होकर के 'इ' की 'ई' होती है। जैसे- जिला जीहा । सिंह सीहो । त्रिंशस्तीसा । विंशतिः बीमा । बहुलाधिकार से कहीं कहीं पर सिंह' आदि शब्दों में 'इ' की 'ई' नहीं भी होती है। जैसे- सिंह इत्तः = सिंह इत्तो । सिंह- राज: सिंह राम्रो ।। इत्यादि ॥ 1
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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