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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [१०६ अधिक जानना । इन चारों रूपों में से दो रूपों में तो 'इ' है और दो रूपों में 'अ' है । यो वैकल्पिकव्यवस्था जानना। पन्या संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप पहा होता है। इस मूल शरद पथिन है । इसमें सूत्र संख्या-६-८८ से 'इ' का 'अ'; १-६८७ से 'थ' का 'ह'; १-११ से 'न्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एक बधन में पुल्लिम में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'भो' होकर पहो' रूप सिद्ध हो जाता है। पूथिवी संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप पुरई होता है । इसमें सूत्र संख्या--१-१३१ से 'ऋ' का 'उ'; १-८८ से आवि 'ई'फा 'अ'; १-१८७ से 'थ' का 'ह'; १-१७ से 'व्' को लोप; और ३-६६ से प्रथमो के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य स्वर का दीर्घ याने 'ई' का 'ई' होकर पहई रूप सिद्ध होता है। पृथिवी संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप पुढवी होता है । इसमें सूत्र संख्या-१-१३१ से 'ऋ' का 'उ'; १-२१६ से 'थ' का 'ढ'; १-८८ से श्रादि 'इ' का 'अ'; और ३-१६ से प्रथमा के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य स्वर का दीर्घ-याने 'ई' का 'ई' ही रह कर पुढी रुप सिद्ध हो जाता है। पहुंमुभा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-२६ में की गई है। मूषिकः संस्कृत शठच है । इसका प्राकृत रूप मूसलो होता है। इसमें सूत्र-संख्था-१-८८ से 'इ' का 'अ'; १-२६० से 'घ' का 'स';१-१७७ से 'क' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मूसी रूप सिद्ध हो जाता है। हारमा संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप हुलही और हलहा होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या-५-५८ से 'इ' का 'अ'; १-२५४ से असंयुक्त 'र' का 'ल' २.७६ से 'र' का श्लोपः २-८ से 'द' का द्वित्व 'इ' ३-३४ से 'आ' की विकल्प से 'ह'; और ३-२८ से प्रथमा के एक धचन में स्त्री लिंग में हलही रुप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में हे०२-४-१८ से प्रथमा के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रा' होकर हलहा रूप सिद्ध हो जाता है। बिमीतकः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप बहेडश्री होता है । इसमें सूत्र-संख्या-५-८८ से आदि 'इ' का 'अ'; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; १-१०५ से 'ई' का 'ए'; १-२०६ से १' का 'ह'; १-१४७ से 'क्' का लोप और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर बहेडमो रुप सिद्ध हो जाता है। हरिद्रा संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप हलिदी और हलिदा होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या५-२५४ से भसंयुक्त 'र' का 'ल'; २-७८ से द्र के 'र' का लोप; २-८८ से 'द' का द्वित्व 'द'; और ३-३४ से 'श्रा' की विकल्प से 'ए' और ३-२८ से प्रथमा के एक बचन में स्त्रीलिंग में हलही रूप सिद्ध हो जाता
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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