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________________ fanmanARMA * प्राकृत व्याकरणम् * चतुर्थपादा -सुद का जवाहरग-तुस्थति-तुट्टइ (वह तोड़ता है, वह दुःख देता है), १०.मट का उदाहरणमदति नमुद (वह नाचता है), ११-सिवका अवाहरण सीव्यतिसिब्बई (वह सीता है। यहां पर शक आदि धातुओं के अन्त्य वणं को द्वित्त्व किया गया है। १०२-स्फुटि और चलि धातुओं के अन्त्यवर्ण को द्वित्व विकल्प से होता है। जैसे---- स्पति-फुट्टइ, फुडइ (वह विकसित होता है), २-चलति- चल्लई,चलइ वह चलता है) यहां पर टकार और लकार को विकल्प से द्वित्त्व किया गया है। १०३-आदि उपसर्गों से परे यदि मोलि धातु हो तो उसके अन्तिम वर्ण को विकल्प से द्विस्व होता है। जैसे-१-प्रमोलतिय पमिल्लइ, पमोल इ (वह संकोच करता है), २-निमीलति निमिल्लाइ, निमीलइ (वह प्रांख मून्दता है), ३.संमोलतिः सम्मिल्लइ, सम्मोलइ (वह पछी तरह से मिलता है), ४-उन्मोलति उम्मिल्लइ, उम्मीलई (वह विकसित होता है) यहां पर लकार को द्विस्त किया गया है। प्रश्न उपस्थित होता है कि सूत्रकार के "प्रादेः (प्रादि उपसगों से परे)" ऐसा कहने का क्या प्रयोजन है ? उत्तर में निवेदन है कि--भीलतिमीलाइ (वह मून्दता है) प्रादि शब्दों में प्रमादि उपसर्गों के अभाव में भी कहीं अन्तिम वर्ण द्वित्व न हो जाए, इस दृष्टि से सूत्रकार ने "प्रायः" इस पद का उल्लेख किया है । प्रादि उपसर्गों का यहां पर प्रभाव होने से प्रस्तुत सूत्र की प्रवृत्ति नहीं हो सकी। ९०४-धातु के अन्तिम उवर्ण को 'अब' यह आदेश होता है। जैसे-टुङ् पातु का उवाहरख-१-निल ते निण्हवइ (वह अपलाप करता है), हु का उदाहरण-२-निजुहोति-निवड (वह हमेशा हवन करता है), पुङका उपाहरण--३---च्यचले-चवइ (वह मरता है), ह का उबा हरणा-४---रोति रवाइ {वह रोता है), कु का उदाहरण----५--कौति -कवाड (वह शब्द करता है)। माह का उदाहरण-६-सुवतिय सवाद (बह प्रेरणा करता है), ७ - प्रसुवति-पसवइ (वह ज्यादा प्रेरणा करता है) यहां पर हुछ प्रादि धातुओं के उकार को अव आदेश किया गया है। ९०५-छातु के अन्तिम ऋषण को 'अर' यह मावेश होता है। जैसे-१करोति करइ (वह करता है), २-धरति धरई (वह धारण करता है), ३-नियते-मर (वह प्राण त्यागता है। ४-पुणोति बारह (वह पसंद करता है, वह सगाई करता है), ५-सरति सरह (वह सरकता हैं), हरति हरई (वह हरण करता है), ७-तरति=तरइ (बह तरता है। -मीर्यते जरइ (बह बूढा होता है) यहां पर ऋकार तथा ऋफार को 'पर' यह मादेश किया गया है। .. .०६-वृष् जैसी धातुओं के ऋवर्ण को 'अरि' यह प्रादेश होता है। जैसे-१-वर्षति-वरिस (वह बरसता है),२-कर्षति-करिसइ (खींचता है),३---मुषति-मरिसइ (बह सहन करता है), ४-हष्पति हरिसइ (वह प्रसन्न होता है) यहाँ पर ऋकार को 'अरि' यह आदेश किया गया है। प्रश्न उपस्थित होता है कि "यह पास वष सी है" इस बात का बोध कैसे हो सकेगा ? उत्तर में निवेदन है कि जिन धातुओं की ऋ के स्थान में परि' यह आदेश किया गया दिखाई देता हो उनको वृषादिधातु समझ लेना चाहिए। . रूष जैसी धातों के स्वर को दीर्घ हो जाता है। जैसे---१.... कृष्यसिया रूस (घम्हें रुष्ट होता है), २-तुष्यति-तुसइ (वह प्रसन्न होता है), ३-शुष्यति-सूसइ (वह सूखता है), ४.. दुख्यतिम्-दूसइ (वह दूषित होता है), ५-पुष्यति: पूसइ (वह पुष्ट होता है), ६--शेषतिम्सीस (वह
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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