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________________ A AAAAAMIMMA ALooter संत हैं। आपने जैन समाज को बहुत बड़ा साहित्य प्रदान किया है। आप अपने साहित्यिक क्षेत्र में । भिरंतर बढ़ते रहें, यही शुभ कामना है। तरुणतपस्त्री प्रखरवक्ता, श्री स्वामी लाभ चन्द्र जी महाराज! ७. जैन-साहित्य का अधिकतर निर्माण प्राकृत भाषा में हुया है, परन्तु हिन्दी भाषा में प्याख्या-सहित अभी तक कोई अच्छा प्राकृत व्याकरण प्रकाशित नहीं हया था। प्राचार्य हेमचन्द्र की ने अपने सिद्ध है मशब्दानुशासन के पाठवें अध्याय के रूप में प्राकृत भाषा का व्याकरण प्रस्तुत किया था, वह भी सर्वसाधारण के लिये बोधगम्य न था, प्रतः प्राकृत व्याकरण का जैन साहित्य के क्षेत्र में नितान्त प्रभाव सा प्रतीत हो रहा था, इस प्रभाव को पूर्ण किया है.-प्रातः-स्मरणीय श्रद्धेय आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज के शिष्य-रस्न पण्डित-प्रवर श्री ज्ञान मुनि जी महाराज ने संस्कृत एवं हिन्दी-टीका सहित इस प्रन्ध को प्रस्तुत करके । लगभग ४२० पृष्ठ के इस महान् ग्रन्थ के द्वारा सामान्य-बुद्धि व्यक्ति भी प्राकृत-भाषा का पूर्णज्ञान प्राप्त कर सकता है। अन्य के अन्त में दी गई। शब्दसूची द्रष्टव्य शब्द को देखने में अत्यन्त सुविधा प्रदान करती है । “प्राकृत-व्याकरणम्" पठनीय एवं संग्रहणीय महान ग्रन्थ है। श्री तिलक वर जी शास्त्री, सम्पादकआत्मरश्मि, जुलाई १९७५, लुधियाना ८. ग्रियर्सन जेकोबी श्रादि पाश्चात्य विद्वानों की तथा अनेक भारतीय विद्वानों की यह धारणा है कि संस्कृत भाषा से भी प्राकृत भाषा अधिक सरल, अधिक लचीली, श्रुति-मधुर और सीखने में सुविधाजनक है । संस्कल का विद्यार्थी तो बहुत हो ग्रासानी से सीख हो सकता है, किन्तु जो संस्कृत का अभ्यासी नहीं हैं, वह भी प्राकृत भाषा को संस्कल की अपेक्षा शीघ्र नहा कर सकता ... है। प्रश्न होता है कि फिर क्या कारण है कि संस्कन का जितना प्रचार-प्रसार है, उसे देखते हुए प्राकृत का प्रचार बहुत ही कम है। जबकि प्राकृत, अपभ्रंश और पालि भाषानों का साहित्य कम नहीं है। इसके अनेक कारणों में एक मुख्य कारण यह भी है कि प्राकल भाषा के व्याकरण बहुत कम सुलभ . हैं । चण्डकृत प्राकृत लक्षण, वररुचि कृत प्राकृत-प्रकाश को प्राचीन प्राकृत व्याकरण काफो महत्वपूर्ण हैं, किन्तु प्राचार्य हेमचन्द्र कृत सिद्ध हैम-शब्दानुशासन व्याकरण का माठवां अध्याय जो प्राकत व्याकरण के नाम से प्रसिद्ध है, वह सर्वाधिक समद्ध, सरल और बोधगम्य व्याकरण है। प्राकत के अधिकांश अभ्यासी इसी का अध्ययन करते हैं। यह व्याकरण संस्कृत माध्यम से प्राकत का ज्ञान कराता है । यद्यपि इसमें उदाहरण आदि बड़े ही बोधगम्य है, सूत्र भी छोटे और उच्चारण सुखद है। प्राकत-व्याकरण का अध्ययन अब तक संस्कृत के माध्यम से ही किया जाता था। इसलिए बिना संस्कृत के प्राकृत का ज्ञान दुर्लभ था। इधर में कुछ प्राकृत-भाषा-विद्वानों ने ऐसा प्रयत्न किया है कि विद्यार्थी अपनी मातृ भाषा के माध्यम से था हिन्दी के माध्यम से सीधा प्राकृत का ज्ञान प्राप्त कर सकें-प्राकृत प्रचार के लिए यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात भी है। इस दिशा में पं० रत्न बी ज्ञान
SR No.090365
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorHemchandrasuri Acharya
PublisherAtmaram Jain Model School
Publication Year
Total Pages461
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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