________________
।
"
"-
-
........
......"
चतुर्थपादः
* संस्कृत-हिन्दी-टोकादयोपेतम् * है] यहां पर 'अथवा' इस अव्ययपद को 'अहवई' यह आदेश किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में "१००० में सूत्र में पठित 'प्रायः [बहुल ]' इस पद का अधिकार [अनुवृत्ति होने से" कहीं पर अथवा के स्थान में 'महबई' यह आदेश नहीं भी होता । जैसे
यायते (गम्यते) तस्मिन् देशे, लम्यते प्रियस्य प्रमाणम् ।
यवि लायाति आमीपते. अशवा सवेव (तत्रय) निर्माणम् ॥२॥ अर्याल - जिस देश में प्रीतम का प्रमाण [चिन्ह ] मिलेगा उस देश में जाऊंगी, यदि वह प्राएगा तो ले ग्राऊंगी, यदि वह नहीं पायगा तो वहीं पर निर्माण [मृत्यु] को प्राप्त हो जाऊंगी। यहां पर 'अथवा' के स्थान में 'अहवाई' यह आदेश नहीं हो सका । बिया के स्थान में किए गए विवे इस प्रादेश का उदाहरण-दिया दिवा गङ्गा-स्नानम्-दिवि-दिवि गङ्गा-हाणु [प्रतिदिन गङ्गास्नान है। यहां पर विवा' के स्थान में 'दिवे यह आदेश किया गया है । 'सह' के स्थान किए 'सह' का उदाहरख
पतः प्रवसता सहन गता, म मृता वियोगेन सस्य ।
लज्ज्यते सन्वेशान् वचतीभिः सुभग-जनस्य ||३|| अर्थात् न तो मैं प्रवास [विदेश मना करते हुए के साथ गई और माँहो मैं उस के वियोग में मरी, अतः अब सौभाग्यशाली प्रिय को सन्देश देती हुई मुझ को लज्जा पा रही है। यहां पर 'सह' के स्थान में 'सहं यह प्रादेश किया गया है। नहि के स्थान में कत नाहि' इस आदेश का उबाहरण--
इतः मेघाः पिबन्ति जलम, इतः वचवानल: आवर्तते ।।
प्रेमस्व गमीरिमारणं सागरस्य, एकापि करिएका नहि अपभ्रश्यते ॥४॥ पर्थात् इधर तो बादल पानी पी रहे हैं और उधर बड़वानल (समुद्र की प्राग) पानी को शोषित कर रहा है, फिर भी पानी की एक बुन्द भी उसमें से कम नहीं होती। समुद्र की इस गम्भीरता को देखो। यहां पर बह इस भव्ययपद के स्थान में 'नाहि यह प्रादेश किया गया है। ... १०६१ -अपभ्रंश-भाषा में-१-पश्चान्, २-- एवमेव, ३--एक, ४---इवानीम्, ५-प्रत्युत
और ६ इसस, इन शन्दों के स्थान में क्रमशः--.-पमछा, २-एम्वइ, ३-जि, ४---एम्बहि, ५पञ्चलिउ पोर६-एत्तहे ये प्रादेश होते हैं। पश्चात् के स्थान में किए गए पन्छाइ इस प्रादेश का उदाहरण -पश्चाद भवति विभातम् -पच्छा होइ विहाणु, इन पदों का अर्थ १०३३ ३ सूत्र में लिखा जा चुका है। यहां पश्चाद के स्थान में 'पेसा' यह प्रादेश किया गया है। एवमेव के स्थान में किए एम्बद का उदाहरण-एवमेव सुरतं समाप्तम् -- एम्बई सुरज समतु [इसी तरह सम्भोग समाप्त हो गया] यहां पर एवमेव इस पद के स्थान में एम्बा यह प्रादेश किया गया है। एक शब्द के स्थान में किए गए जि इस भादेश का उदाहरण इस प्रकार है-....
यातु मा यान्तं पहलवत द्रक्ष्यामि पदानि बदाति ।
हरये तिर्यग् अहमेव परं प्रियः सम्बराणि करोति ॥५॥ प्रति-हे सखि ! मेरे प्रीतम को जाने दो, जाते हुए का पल्ला मत पकड़ो, मैं देखूगी कि वह कितने पग जाता है ? उस के हृदय में तो मैं ही छिपी हुई है, ऐसी स्थिति में वह जा ही नहीं सकता, वह मेरा प्रिय केवल जाने का प्राडम्बर करता है। यहां पर एव' इस पद को 'जि' यह मादेश किया गया है। दानीम् के स्थान में किए गए 'एम्बाह' प्रादेश का उदाहरण----
हरि नतितः प्राङ्गणे, विस्मये पातितः लोकः । जवानी राषा-पयोधरयो, मद् भाति तब भवतु ॥२॥
EMALE