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________________ के साथ भी हुआ है । फलितार्थ यह है कि यह काव्य बिना ही स्थलनायक के है और यह इसकी एक स्वास विशेषता है। रस अलंकार एवं छन्द 'प्रध म्न चरित' वीर रसात्मक काव्य है । काव्य का प्रथम सर्ग युद्ध गईन ले पा लोक हित जननी युज गर्गन से ही समाप्त होता है। बैंसे यद्यपि इसमें अन्य रमों का भी प्रयोग हुआ है ; किन्तु वीर रस प्रधान रूप से इस काक्ष्य का रस मानना चाहिये । श्रीकृष्ण-जरासन्ध युद्ध, प्रद्युम्नसिंहरथ युद्ध, प्रद्युम्न-कालसंवर युद्ध, प्रद्युम्न श्रीकृष्ण-युद्ध एवं प्रद्य म्न रूपचन्द-युद्ध इस प्रकार काव्य का काफी हिस्सा युद्ध-वर्णन से भरा पड़ा है | पाठक को प्रायः काव्य के प्रत्येक सर्ग में युद्ध के दृश्य नजर आते हैं। "रहिवर साजह, गयवर गुह, सजा सुहल, आज रण सि" के वाक्य काव्य में सर्वत्र प्रयोग किये गये हैं। सिंहरथ जब प्रद्युम्न को बालक समझ कर युद्ध करने में लज्जा का अनुभव करने लगता है तो उस समय उसे प्रय म्न जिस प्रकार जवाब देता है वह पूर्णतः वीरोचित जवाब है : वालउ सूरु श्रागासह होइ,तिन को जूझ सकइ धर कोइ । बाल वभंगु डसह सर आइ, ताके त्रिसमरिण मंतु न आहि ॥१६८।। सीहिणि सीहु जणे जो वालु, इस्ती जूह तणो बे कालु । जूह छाडि गए वण ठाउ, ताकह कोण कहै भरिवाउ ॥१६६|| इसी प्रकार जब श्रीकृष्ण और प्रद्युम्न में युद्ध के समय वार्तालाप होता है तो वह वास्तव में वीर रसात्मक है । उसके पड़ने से उसके नायक प्रम म्न की वीरता एवं शौर्य की आश्चर्य-कारी चतुरता का पता चलता है । यद्यपि उस जमाने में आज की तरह जन विनाश कारी आणविक व अन्य शस्त्र नहीं थे, किन्तु तलबार, धनुष, गदा, भाला, गोफन, बी, बाण एवं चक्र ही प्रमुख थियार थे । लड़ाई में योद्धा इतने कुशल थे कि एक समय में धनुप में ५० याण तक चढ़ाकर चला सकते थे । अग्निबाण जलयारण, वायु गण, नागपाश बादि के प्रयोग करने की प्रथा थी। वायु बाण और जज्ञवाया आदि कैसे होते थे कुछ कहा नहीं जा सकता । माया से अनेकानेक शस्त्रास्त्रों का निर्माण कर के भी युद्ध लड़ा जाता था । कभी २ माया से घिरोघी सेना भूच्छित भी करदी जाती थी जो अंत में पुनरुज्जीवित हो जाती थी। इन विद्याओं के कारण यह काव्य अद्भुन रस से ओत प्रोत है इसलिए इसका मुख्य रस बोर होने पर भी यह अद्भत मिश्रित है।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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