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________________ ( २५ ) सरसकथा रस उपजइ घणउ, निसुरगउ चरित पज्जउबनतएउ । संवत् चउदसइ इग्यार, ऊपरि अधिक भई ग्यार । भादव सुदि नवमी जे सार, स्वाति नक्षत्र सनीचर वार । देवलोक प्राणोत्तर सार, हरिवंश प्राध्याउ वंश सवार ।।१२।। खण्डेलवाल जैन पंचायती मन्दिर कामां उक्त पद्यों में जयपुर वाली प्रति में सम्बत् १४११ भाद्रपद मास पंचमी शनिवार स्वाति नक्षत्र एवं कामां वाली प्रति में सम्बत् १४११ भादवा सुदी शनिवार स्वाति नक्षत्र रचना काल दिया हुआ है। दोनों प्रतियों में तिथियों के अतिरिक्त शेष बातें समान है । इसी प्रकार उज्जैन वाली प्रति में निम्न पाठ है :संवत् पंचसइ हुई गया, गरहोतराभि अरु तह भया । भादव बदि पंचमि तिथि सारु, स्वाति नक्षत्र सनीस्चरवाह ।। इसके अनुमार 'प्रद्युम्न चरित' की रचना सम्बत् १५११ भादवा चुदी ५ शनिबार स्वाति नक्षत्र के दिन पूर्ण हुई थी। इस प्रकार सभी प्रतियों में भाद्रपद मास शनिवार एवं स्वाति नक्षत्र इन तीनों का एक-सा उल्लेख मिलता है। इसलिये यह तो निश्चित है कि प्रद्यम्न चरित की रचना भाद्रपद मास एवं शनिवार के दिन हुई थी। किन्तु रचना सम्बत् कौनसा है, यह हमें देखना है। तीनों रचना सम्बतों में सम्बत् १५११ वाला रचना काल तो सही प्रतीत नहीं होता है क्योंकि प्रथम तो यह सम्बत् अभी तक एक ही प्रति में उपलब्ध हुआ है। इसके अतिरिक्त ' 'पंचस' पाठ स्वयं भी गलत है इससे पन्द्रह सौ का अर्थ नहीं निकलता इसलिये सम्बत् १५११ वाले पाठ को सही साना युक्ति संगत नहीं है। सम्बत् १३११ वाला पाठ जो अभी तक ३ प्रतियों में मिला है, उसके सम्बन्ध में भी हमारा यही मत है कि गुण सागर नामक किसी विद्वान् ने सम्बत चौदहस के स्थान पर तेरहसइ पाठ परिवर्तित कर दिया तथा 'सुणि चरित मइ रचिउ पुराण' के स्थान पर इस रचना का कर्ता स्वयं बनने के लोभ से प्रेरित होकर 'गुण सागर यह कियो बखान' पाठ बदल दिया। इसके अतिरिक्त इस कवियशः प्रार्थी ने प्रारम्भ के जिन पद्यों में सधार का नाम था उनके स्थान पर नये हो मंगलाचरण के पद्य जोड़ दिये ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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