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( २१२ ) (६१५) दोनों कुमार जिन्होंने एक ही दिन अवतार लिया था चन्द्रमा के समान वृद्धि को प्राप्त होते हुचे एक ही स्थान पर पड़ने लगे।
शंबुकुमार और सुभानुकुमार का साथ साथ क्रीडा करना
(६१६) एक दिन दोनों ने जुआ खेला तथा करोड़ सुवंद (मोहर) का दांव लगाया । उस दांव में शंबुकुमार जीता तथा सुभानु हार करके घर चला गया।
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द्य त क्रीडा का प्रारम्भ (६१७) तय सत्यभामा हुसकर मन में विचार करने लगी। उसने कहा कि इस भुर्गे से फिर खेल खेलो अर्थान लड़ानो और जो हार जावे वहीं दो करोड़ मोहर देवे ।
(६१८) तब उसने मुर्गा छोड़ दिया और मुर्गे आपस में भिड़ गये । इस खेल में सुभानु का मुर्गा हार गया तव शंबुकुमार ने दो करोड़ मोहर जीत ली।
(६१६) इसके पश्चात उसने बहुत से खेल किये । (सत्यभामा) दूसरों से भी काफी मंत्रणा करने के पश्चात् दूत को बुलाकर वहां भेजा जहां विद्याधर रहता था।
(६२८) दूत ने वहां जाने में जरा भी देर नहीं लगायी और जाकर विद्याधर को सारी बात बता दी । वहां दूत ने कहा कि जो इच्छा हो वही ले लो और अपनी पुत्री केवल सुभानुकुमार को ही देत्रो।
सुभानुकुमार का विवाह (६२१) विद्याधर के मन में बड़ी प्रसन्नता हुई और अपनी कन्या को ... विवाह के लिये दे दिया । जय सुभानु का विवाह हुथा तो द्वारिका नगरी में सुन्दर शब्द होने लगे।
(६२२) जब सुभानु का विवाह हो गया तब मुक्मिणी के मन में विचार हुआ और मंत्रणा करके उसने दूत को बुलाया और रूपकुमार के पास भेजा।