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( २०१ ) श्रीकृष्ण का क्रोधित होकर विभिन्न प्रकार के बाणों से युद्ध करना
* (५२५) रथ पर चढकर यदुराज ने क्रोधित होकर अपने हाथ में धनुष ले लिया । प्रचालत नारनवाण को फैका जिससे चारों दिशाओं में तेज ज्वाला पैदा हो गई।
(५२६) प्रद्युम्न की सेना भागने लगी। वह अग्नि बाण से निकलने वाली ज्वाला को सहन नहीं कर सकी । घोड़े हाथी रथ आदि जलने लगे और इस प्रकार उसकी सेना के पैर उखड़ गये ।
(५२७) प्रद्युम्न को क्रोध आया उसकी रण की ललकार को कौन सह सकता है । उसने पुष्प माला नामक धनुष हाथ में ले लिया और उस पर मेघबाण को चढ़ाया।
(५२८) धन घोर बादल गर्जने लगे और पृथ्वी को जल से भरने लगे जब जल ने अग्नि को बुझा दिया तब इस जल से श्रीकृष्ण को ना बहने लगी।
(५२६) जो क्षत्रिय श्रेष्ठ रथ पर सवार थे वे जल के प्रवाह में बहने लगे। सारे हाथी घोड़े रथ वगैरह बद्द गये तथा बहुत से क्षत्रिय राजा भी वइ गये।
(१३०) तब प्रद्युम्न ने श्रीकृष्ण को कहा कि यह अच्छी चाल चली गयी है ? नारायण के मन में संदेह पैदा हुआ कि यह मेह कैसे बरस गया ?
(५३१) यह जानकर श्रीकृष्ण को बड़ा श्राश्चर्य हुआ और मारुस (पायु) बाण हाथ में लिया । जब बाण तेजी से निकल कर गया तो मेघों का समूह समाप्त होने लगा।
(५३२) मायामयी सेना भी कांप गयी और छत्र उड़ उड कर जमीन पर गिरने लगे। चतुरंगिणी सेना भागने लगी तथा हाथी, घोड़े एवं रथों को कोई संभाल नहीं सके।
(५३३) तब प्रद्य म्न मन में क्रोधित हुआ तथा पर्वत बाण को हाथ में लिया। थाण को धनुष पर चढाया जिससे पर्वत ने आड़े आकर इवा को रोक दिया।