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________________ ( १६ ) खादे में डाल दिया। फिर उनने माता को उस विमान में ले जाकर बैठा दिया जहां नारद और उदधि कुमारी बैठे थे । इसके पश्चात् प्रद्युम्न ने मायामयी रुक्मिणी की बांह पकड़ कर उसे श्रीकृष्ण की सभा के आगे से ले जाते हुए ललकारा कि यदि किसी वीर में सामर्थ्य हो तो वह श्रीकृष्ण की रानी रुक्मिणी को छुड़ा कर ले जावे। फिर क्या था, सभा में बड़ी खलत्रली मच गई और शीघ्र ही युद्ध की तैयारी होने लगी। श्रीकृष्ण अपने अनेक योद्धाओं को साथ लेकर रणभूमि में या हटे किन्तु प्रयुम्न ने सभी योद्धाओं को मायामय नींद में सुला दिया। इससे श्रीकृष्ण बड़े क्रोधित हुए और प्रद्युम्न को ललकार कर कहने लगे कि वह मणी को पस लौटा कर ही अपने प्राणों की रक्षा कर सकेगा । किन्तु ष कब मानने वाला था । श्रखिर दोनों में युद्ध होने लगा । श्रीकृष्ण जी जो भी वार करते उसे प्रद्युम्न अविलम्ब काट देता। इस तरह दोनों बोरों में भयंकर लड़ाई हुई जब श्री कृष्ण कुपित होकर निर्णायक युद्ध करने को तैयार होने लगे तो नारद वहां आ गये और दोनों का परस्पर में परिचय करवाया । प्रद्युम्न श्रीवृपण के पैरों में गिर गया और श्रीकृष्ण ने आनन्द 'विभोर होकर उसका सनम लिया। प्रयन ने अपनी मोहिनी माया को "समेटा और सारी सेना उठ खड़ी हुई। घर घर तोरण द्वार बांधे गये तथा सौभाग्यवती स्त्रियों ने मंगल कलश स्थापित कर नगर प्रवेश पर उनका अभूतपूर्व स्वागत किया। इस तरह यह कार्यक्रम बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। फिर प्रयम्न का राज्याभिषेक का महोत्सव हुआ, तब कालसंबर और कंचनमाला को भी बुलाया गया। इसके पश्चात् प्रयुन्न का विवाह बड़े ठाठ चाट से किया गया। सत्यभामा ने अरने पुत्र भानुकुमार का विवाह भी सम्पन्न किया। वे सत्र बहुत दिनों तक सुखपूर्वक जीवन की सुविधाओं का उपभोग करते रहे । 10 + कुछ समय पश्चात शंबुकुमार का जीव अच्युत स्वर्ग से श्री कृष्ण की सभा में आया और एक अनुपम हार देकर उनसे कहने लगा कि जिस रानी को आप यह हार देंगे उसी को कूख से उसका जन्म होगा। श्रीकृष्ण यह हार सत्यभामा को देना चाहते थे, किन्तु प्रद्युम्न ने अपनी विद्या के बल से जामवन्ती का रूप सत्यभामा का सा बना कर श्री कृष्ण को धोखे में डाल दिया और वह हार उसके गले में डलवा दिया। इसके बाद जामवन्ती और सत्यभामा दोनों के क्रमशः शंबुकुमार और सुभानुकुमार नाम के पुत्र हुए । दोनों साथ साथ हो वृद्धि को प्राप्त हुए। जब वे बड़े हुए तो एक दिन दोनों
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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