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________________ ( १६२ | (१७६) तब राजा ने तलवार निकाली। मेघ के समान निरन्तर वालों की वर्षा होने लगी । सुभट आपस में हाथ में तलवार लेकर भिड़ गये। रथ नष्ट हो गये और हाथी लड़ने लगे। (१०) हाथियों से हाथी भिड गये तथा घोड़ों से घोड़े जा भिड़े । इस प्रकार उनको युद्ध करते हुये पांच दिन व्यतीत हो गये । वह युद्ध क्षेत्र श्मशान बन गया और वहां गृद्ध उड़ने लगे । (१८१) जब सेना युद्ध करती हुई थक गयी तब दोनों वीर रण में भि गये। दोनों ही वीर सावधान होकर खड़े हो गये। दोनों ही सिंह के समान जम कर लड़ने लगे । (१८२) वे दोनों ही बीर मल्लयुद्ध करने लगे तथा दोनों वीरों ने उस स्थान को अखाड़ा बना दिया । अन्त में सिंहस्थ चिल्कुल हार गया और ने उसके गले में पैर डालकर बांध लिया । प्र म्न (१८३) जब प्रश्च मनकुमार ने विजय प्राप्त की तो उस समय देवता गण ऊपर से देख रहे थे। सिंह को बांध कर जय कुमार रवाना जिससे सज्जन हुआ तो (यमसंवर ने) गुणवान कामदेव को तुरन्त हो बुलवाया लोग आनंदित हुये । राजा भी देखकर आनंदित हुआ और कहने लगा कि तुमने इस अवसर पर बड़ी कृपा की है। मेरे जो पांच सौ पुत्र हैं उनके ऊपर तुम राजा हो । (१८४) ऐसे कामदेव के चरित्र को जिसे सोलह लाभ प्राप्त हुये हैं सब कोई सुनो। विद्याधर ने कृपा कर बंधे हुये सिंध राजा को छोड दिया और उससे पद (दुपट्टा ) देकर गले मिला तथा सिंहस्थ भी भेंट देकर घर चला गया 1 (१-५) कुमारों के मन में दुःख हुआ कि हमारे जीते हुये ही यह हमारा राजा हो गया । राजा को इतना मान नहीं देना चाहिये कि दत्तक पुत्र को हम पर प्रधान बना दे । (१८६) तत्र कुमारों ने मिलकर सोचा कि अब इसको समाप्त करना चाहिये । श्रत्र इसको सोलह गुफाओं को दिखाना चाहिये जिससे हमारा राज्य निष्कंटक हो जावे । कुमारों द्वारा प्रद्यग्न को १६ गुफाओं को दिखाना (१७) इस युक्ति को कोई प्रकट न करे। प्रद्युम्नकुमार को बुलाकर सय कुमारों ने मिलकर सलाइ की और खेलने के बहाने से वनक्रीडा को चले ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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